Monday, September 15, 2025

भंते! आप वृक्ष को प्रणाम क्यों कर रहे हैं?

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

महात्मा बुद्ध ने बुद्धत्व प्राप्त करने के बाद जीवन भर लोगों को सदाचार और प्रकृति से सामन्जस्य बनाकर रहने की प्रेरणा दी। उन्होंने किसी भगवान को पूजने की जगह प्रकृति की पूजा का संदेश दिया। उनका मानना था कि प्रकृति के समस्त अंगों और उपांगों का संरक्षण और पूजन ही सच्चा धर्म है। जब मनुष्य प्रकृति पूजा करने लगेगा, तो वह प्रकृति के अंग मनुष्य को भी संरक्षित करेगा। 

एक बार की बात है। किसी पेड़ के नीचे कुछ घंटे साधना करने के बाद जब महात्मा बुद्ध उठे, तो उन्होंने उस वृक्ष को प्रणाम किया और बड़ी श्रद्धा से उससे सामने शीश झुकाया। यह देखकर पास खड़ा उनका शिष्य आश्चर्यचकित होते हुए बोला, भंते! आप जैसा महान व्यक्ति पेड़ को झुककर प्रणाम कर रहा है। आपने ऐसा क्यों किया? तब महात्मा बुद्ध ने कहा कि मेरे इस वृक्ष को नमन करने से किसी प्रकार के अनिष्ट की आशंका है क्या? 

उस शिष्य ने कहा कि नहीं, लेकिन सोचने वाली बात यह है कि जब यह पेड़ आपकी बातों का कोई जवाब नहीं दे सकता है, तो आपके प्रणाम करने से क्या फायदा है? अपने शिष्य की बात सुनकर तथागत मुस्कुराए और बोले कि यह वृक्ष भले ही हमारी आपकी तरह बोलकर कुछ न कह रहा हो, लेकिन यह प्रकृति की भाषा में हमारे प्रणाम का उत्तर खुशी से झूमकर दे रहा है। जिस वृक्ष ने मुझे छाया दी, शीतल वायु प्रदान किया, सूरज की तेज किरणों से मुझे बचाया, उसके प्रति आभार व्यक्त करना मेरा कर्तव्य है। 

ध्यान से देखो, तो पता चलेगा कि यह अपनी पत्तियों को हिलाकर हमारे प्रति आभार व्यक्त कर रहा है। यह सुनकर शिष्य ने बड़े गौर से वृक्ष को निहारा, तो उसे लगा कि वृक्ष झूमते हुए महात्मा बुद्ध को नमन कर रहा है।

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