अशोक मिश्र
एथेंस के प्राचीन यूनानी दार्शनिकों में सुकरात का नाम बड़े आदर के साथ लिया जाता है। एथेंस में सुकरात का जन्म 470 ईसा पूर्व हुआ माना जाता है। इनके पिता एक अच्छे मूर्तिकार थे और अच्छी खासी जमीन जायदाद भी थी। उसका एक हिस्सा सुकरात को विरासत में मिला था जिसकी वजह से वह जीवन भर आर्थिक संकट से बहुत दूर रहे। यूनान में 399 ईसा पूर्व सुकरात पर युवाओं को पथभ्रष्ट करने और परायणहीनता के लिए प्रेरित करने के अपराध में मौत की सजा सुनाई गई थी।
तत्कालीन परंपरा के मुताबिक उन्हें सजा के रूप में जहर का प्याला पीने को दिया गया था। सुकरात से जुड़ी एक रोचक कथा कही जाती है। एक बार की बात है। वह घूमते हुए एक बुजुर्ग आदमी से मिले। उस आदमी ने सुकरात का बड़ी आत्मीयता से स्वागत किया और उन्हें अपने घर ले गया।
वह बुजुर्ग अपने जमाने का एक नाम व्यापारी था। उसके घर में सुकरात ने देखा कि उसके बेटे और बहुएं बड़े सलीके से रहते हैं। सुकरात ने उस बुजुर्ग से पूछा कि आपके यहां तो सब बहुत मिल जुलकर रहते हैं। उस बुजुर्ग ने कहा कि मैंने अपना सारा कारोबार अपने बेटों को सौंप दिया है। घर की देखभाल का जिम्मा बहुओं पर है। मैं अब उनके काम में किसी तरह का दखल नहीं देता हूं।
यदि वह मुझसे किसी मामले में सलाह मांगते हैं, तो मैं अपने जीवन के अनुभवों के आधार पर उन्हें बता देता हूं। यदि वह मेरी सलाह नहीं मानते हैं, तो भी मैं दुखी नहीं होता हूं। वह जो खाने को दे देते हैं, मैं खा लेता हूं। मेरे बेटे या बहुएं मेरी इच्छा के अनुसार चलें, ऐसी मेरी कोई इच्छा भी नहीं है। सलाह देने के बाद भी यदि वह गलती करते हैं, तो भी मैं दुखी नहीं होता हूं। यह सुनकर सुकरात ने कहा कि आपने तो सुखी जीवन जीने का रहस्य जान लिया है। यही उचित है।
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