Thursday, September 18, 2025

अहंकार त्यागकर ही सीखा जा सकता है

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

हमारे धर्मग्रंथों में मनुष्य के जीवन को बरबाद कर देने वाले छह विकारों की चर्चा की गई है। काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद और मत्सर नाम के इन छह विकारों से मनुष्य को हमेशा बचकर रहने की सलाह दी गई है। इन छह अवगुणों से जो भी ग्रसित हुआ, उसके जीवन में पतन की शुरुआत निश्चित मानी जाती है। काम और क्रोध के बाद अहंकार यानी मद तो व्यक्ति को सबसे पहले पतन की ओर ले जाते हैं। 

व्यक्ति जीवन भर उलझता रहता है, लेकिन जीवन की पहेलियां सुलझ नहीं पाती हैं। इस संबंध में एक बहुत ही रोचक कथा है। किसी राज्य में एक युवा गुरुकुल में तीरंदाजी सीख रहा था। कई साल के अभ्यास के बाद वह एक अच्छा तीरंदाज बन गया। धीरे-धीरे उसमें अहंकार आता गया और उसने अपने को दुनिया का सबसे बड़ा तीरंदाज मान लिया। अब वह जगह-जगह जाकर लोगों को तीरंदाजी के लिए ललकारता और हराने के बाद हारने वाले का खूब मजाक उड़ाता। 

धीरे-धीरे उसकी ख्याति बढ़ती गई। एक दिन उसने अपने ही गुरु को तीरंदाजी के लिए चुनौती दे दी। उसकी चुनौती पर गुरु जी मुस्कुराए और उससे अपने पीछे आने को कहा। गुरु जी उसे लेकर एक ऐसी जगह पहुंचे, जहां एक जर्जर पुल बना हुआ था। उस जर्जर पुल के बीचोबीच में जाकर गुरु जी ने अपने तरकश से तीर निकाला और दूर खड़े एक पेड़ का निशाना लगाया। 

तीर जाकर पेड़ में आधा धंस गया। गुरु ने शिष्य से कहा कि अब तुम निशाना लगाओ। उस पुल पर डरता-डरता शिष्य पहुंचा और पेड़ का निशाना लगाया। शिष्य का तीर लक्ष्य तक ही नहीं पहुंच पाया। शिष्य बहुत शर्मिंदा हुआ। गुरु जी ने कहा कि जब तक सीखने की ललक रहती है, तभी तक कोई सीख सकता है। अहंकार सीखे हुए को भी भुला देता है।

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