अशोक मिश्र
कोई भी रचना तभी सफल और सार्थक होती है, जब उसका रचनाकार अपने पात्रों में पूरी तरह डूब जाता है। रूस के महान साहित्यकार लियो टॉलस्टाय भी कुछ इसी किस्म के थे। वह कहानी या उपन्यास लिखते समय पूरी तरह अपने पात्रों में डूब जाते थे।
लियो टॉलस्टाय का जन्म रूस के मास्को में 9 सितंबर 1828 को हुआ था। वह अमीर परिवार से संबंध रखते थे। यही वजह है कि उन्हें मक्सिम गोर्की की तरह आर्थिक कठिनाइयों का सामना नहीं करना पड़ा था। बाद में धनसंपत्ति से विरक्ति हो गई और उसे लोगों में बांट दी थी। यह घटना उस समय की है जब वह अपना प्रसिद्ध उपन्यास अन्ना करोनिना लिखकर पूरा कर चुके थे।
वह अपना उपन्यास पूरा करने के बाद घूमने निकले। उनके दिमाग में वही अन्ना घूम रही थी। घूमते-घूमते वह एक पुल के पास जा खड़े हुए। तभी उस रास्ते से एक सिपाही गुजरा। उसने टॉलस्टाय से पूछा कि तुमने इधर से किसी जाते हुए देखा है। उन्होंने तपाक से कहा कि हां, अभी-अभी इसी पुल से छलांग लगाकर एक बहुत सुंदर सी लड़की अन्ना ने छलांग लगाकर अपनी जान दे दी है। लेकिन हुजूर उसके बाल सुनहरे नहीं थे। कुछ कुछ काले थे। उसकी आंखें बहुत सुंदर थी। नीली नीली आंखों में बहुत गहरी संवेदना भरी हुई थी।
यह सुनते ही सिपाही ने कहा कि नालायक, तूने उसे रोका क्यों नहीं। बदमाश चल तुझे थाने चलना पड़ेगा। थाने में जब पुलिस कप्तान ने टॉलस्टाय को देखा, तो उठकर सलाम ठोका और कहा कि सर कुछ काम था, तो मुझे बुलवा लिया होता। टॉलस्टाय ने हंसते हुए कहा कि जब सिपाही ने पूछा, तो मैं अपने उपन्यास के पात्र में खोया हुआ था। उन्होंने सारी घटना बताई, तो सभी ठहाका लगाकर हंसने लगे।
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