Tuesday, September 9, 2025

महाराज! मुझे ज्ञान दान चाहिए

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

अट्ठारवीं शताब्दी में मराठा साम्राज्य के प्रधान न्यायाधीश थे राम शास्त्री प्रभूणे। राम शास्त्री की न्यायप्रियता और सदाचार के किस्से आज भी सुने-सुनाए जाते हैं। शास्त्री का जन्म सतारा जिले के माहुल गांव में एक गरीब ब्राह्मण परिवार में 1724 ईस्वी में हुआ था। बचपन में ही इनके माता-पिता की मृत्यु हो गई थी। तीव्र बुद्धि के राम शास्त्री पढ़ना चाहते थे। 

उन्होंने सुन रखा था कि मराठा साम्राज्य के शासक माधवराव पेशवा अपने जन्मदिन पर सबको इच्छित वस्तु प्रदान करते हैं। जिस दिन माधव राव पेशवा का जन्मदिन आया, राम शास्त्री पहुंच गया राजदरबार। उन्होंने देखा किसी ने धन मांगा, किसी ने संपत्ति। जिसकी जो इच्छा थी, उसको वह मिला। जब राम शास्त्री का नंबर आया, तो पेशवा ने पूछा, बेटा तुम्हें क्या चाहिए? 

राम शास्त्री ने कहा कि मैं आज आपके सामने एक विशेष मांग रखना चाहता हूं। शास्त्री के शब्दों की दृढ़ता और आत्म विश्वास को देखकर पूरा राजदरबार चकित था। पेशवा ने कहा कि बताओ, तुम्हारी क्या इच्छा है? राम शास्त्री ने कहा कि महाराज! मुझे ज्ञान दान चाहिए। इसके सिवा मुझे कुछ नहीं चाहिए। धन तो एक न एक दिन खत्म हो जाएगा। भूमि यदि मांगू, तो भी उससे मुझे कोई फायदा नहीं होगा। महाराज, मैं एक अनाथ ब्राह्मण पुत्र हूं। मेरे माता-पिता की मौत हो चुकी है। मैं पढ़ना चाहता हूं। आप मेरे पढ़ने की व्यवस्था कर दें।

पेशवा ने तुरंत शास्त्री के पढ़ने की व्यवस्था की। कई साल बाद राम शास्त्री मराठा साम्राज्य के प्रधान न्यायाधीश बनाए गए। एक बार उनके पुत्र गोपाल शास्त्री को भी सम्मानित होने वाले विद्वानों की सूची में शामिल किया गया, तो रामशास्त्री को पता चलते ही अपने पुत्र का नाम उस सूची से हटवा दिया।

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