Friday, September 19, 2025

बात-बात पर उग्र क्यों हो जा रहे हैं हमारे नौनिहाल?

अशोक मिश्र

हमारे देश की युवा पीढ़ी इतनी उग्र क्यों हो रही है, इस पर समाज को गंभीरता से विचार करना होगा। बात-बात पर आक्रामक हो जाने वाली नई पीढ़ी ऐसा क्यों कर रही है? यह समस्या किसी एक परिवार की नहीं है, बल्कि पूरे समाज की समस्या है। नारनौल जिले के कनीना खंड के खेड़ी तलवाना गांव की रहने वाली एक महिला की उसके बेटे ने पीट-पीटकर जयपुर में हत्या कर दी। हत्या का कारण बहुत ही मामूली बताया जा रहा है। कहा जा रहा है कि वाई-फाई कनेक्शन को लेकर दोनों में कहा सुनी हुई। 

इसके बाद उसने अपनी मां को डंडों से पीट-पीटकर हत्या कर दी। उसे बचाने के लिए जब सेवानिवृत्त फौजी पिता और बहनें आईं, तो उनसे भी मारपीट की। बुरी तरह घायल महिला को जब अस्पताल पहुंचाया गया, तो उसने इलाज के दौरान दम तोड़ दिया। समाज में इस तरह की बहुत सारी घटनाएं आए दिन सामने आती रहती हैं। कहीं कोई पिता अपनी बेटी की हत्या कर रहा है, तो कहीं कोई भाई अपने ही भाई-बहन को जान से मार दे रहा है। इन घटनाओं के पीछे कोई बहुत बड़े कारण नहीं होते हैं। 

बस, मामूली सी बातें होती हैं और युवा उग्र होकर ऐसी घटनाओं को अंजाम दे बैठते हैं। आखिर क्यों, युवाओं में यह प्रवृत्ति क्यों पनप रही है? इसके पीछे सामाजिक ढांचे आए बदलाव को प्रमुख कारण माना जा रहा है। हो यह रहा है कि एकल परिवार की अवधारणा के चलते ज्यादातर घरों में पति-पत्नी दोनों कामकाजी होते जा रहे हैं। बच्चा दिन भर अकेले ही घर में रह रहा है। स्कूल या कालेज से आने के बाद बच्चा क्या कर रहा है, इस पर कोई ध्यान देने वाला नहीं है। शाम को घर लौटने पर थके मां-बाप के पास अपने बच्चे के लिएभी समय नहीं होता है। ऐसी दशा में वह भीतर ही भीतर कुंठित होने लगते हैं। 

उनके भीतर मां-पिता के ही प्रति नहीं, बल्कि समाज के प्रति भी आक्रोश पनपने लगता है। वह विद्रोही हो उठते हैं। थोड़ी थोड़ी बात पर ही उनका गुस्सा उबाल मारने लगता है। हिंसक हो जाते हैं। ऊपर से  परिवार पर बढ़ता महंगाई का बोझ, बेरोजगारी और माता-पिता की अपनी संतानों से बढ़ती अपेक्षाएं उन्हें उग्र बना रही हैं। ऐसा नहीं है कि गरीबी, बेकारी और महंगाई का दबाव पहले नहीं था, तब संयुक्त परिवार हुआ करते थे। परिवार के बच्चों पर सबकी निगाह रहा करती थी। 

बच्चे अपने परिवार के बड़े बुजुर्गों से आत्मिक रूप से जुड़े रहते थे। तब यदि कोई परेशानी हुआ करती थी, तो  परिवार के लोग मिलकर उसे सुलझा लिया करते थे। संयुक्त परिवार हर परिस्थिति में एक सेफ्टी वाल्व के रूप में काम करता था। आपस में प्यार से लड़-झगड़कर अपने आक्रोश को निकाल दिया करते थे।

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