अशोक मिश्र
हमारे देश में एक बहुत पुरानी कहावत कही जाती है-जैसा बोओगे, वैसा काटोगे। आदमी यह सोचकर दूसरे के साथ बेईमानी करता है कि किसी को उसका पता नहीं चलेगा। लेकिन जब कोई दूसरा उसके साथ बेईमानी करता है, तो वह आगबबूला हो जाता है। किसी गांव में एक किसान रहता था। उसने गाय और भैंस पाल रखी थीं। वह रोज मक्खन बेचने पास के कस्बे में जाया करता था।
एक दुकानदार उससे पावभर मक्खन रोज लिया करता था। यह क्रम कई साल से चला आ रहा था। एक दिन दुकानदार के मन में आया कि क्यों न इस मक्खन को तौल लिया जाए। उसने मक्खन को तौला, तो पाया कि पचास ग्राम मक्खन कम है। वह बहुत नाराज हुआ। उसने उस किसान को बेईमान बताकर मुकदमा दायर कर दिया। न्यायाधीश ने पहले दुकानदार की पूरी बात बड़ी गंभीरता से सुनी।
उसे लगा कि सचमुच किसान ने बेईमानी की है। इतने साल से वह दुकानदार को कम मक्खन देकर पूरे पैसे लेता आ रहा है। न्यायाधीश ने उस किसान से पूछा कि तुम मक्खन रोज तौलकर बेचते हो? किसान ने बड़ी मासूमियत से कहा कि मेरे पास तराजू तो है, लेकिन मापने के लिए बाट नहीं है। तब न्यायाधीश से कहा कि तुम बाट क्यों नहीं खरीद लेते हो?
किसान ने कहा कि हुजूर, मैं एक गरीब किसान हूं। मेरे पास बाट खरीदने के पैसे नहीं हैं। न्यायाधीश ने कहा कि तब तुम मक्खन को तौलते कैसे हो? किसान ने बताया कि वह मक्खन बेचने से पहले दुकानदार से रोज पावभर गुड़ लेता हूं। जब मक्खन तैयार हो जाता है, तो उसी गुड़ से मैं मक्खन तौल लेता हूं। यह सुनकर न्यायाधीश को सारा माजरा समझ में आ गया। उन्होंने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि इस मामले में बेईमान किसान नहीं, बल्कि दुकानदार है। वह रोज किसान को पचास ग्राम गुड़ कम देता आ रहा है।
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