अशोक मिश्र
लगभग बीस साल दक्षिण अफ्रीका में बिताने के बाद जब महात्मा गांधी भारत लौटकर आए, तो उन्होंने सबसे पहले भारत की दशा-दिशा समझने का प्रयास किया। इसके लिए उन्हें भारत का पैदल भ्रमण करना पड़ा। पदयात्रा के ही दौरान उन्हें भारत की सच्ची तस्वीर समझ में आई। वह समझ गए कि भारत में गरीबी, छुआछूत, अंधविश्वास और निरक्षरता बहुत अधिक है। जब तक लोगों को रोजगार और सामाजिक कुप्रथाओं से मुक्ति नहीं मिलेगी, तब तक देश का भला नहीं किया जा सकता है।
इसके लिए उन्होंने दलित बस्तियों में स्वच्छता अभियान चलाने पर जोर दिया। वह जहां भी रहते थे, वहां चिकित्सा की भी व्यवस्था जरूर करते थे ताकि गांव के लोगों का इलाज किया जा सके। महात्मा गांधी के आश्रम में विदेश से पढ़कर आए भारतीय और विदेश से आए कुछ युवा डॉक्टर सेवाभाव से काम करते थे।
एक दिन की बात है। पास के गांव की एक महिला गांधी जी के पास आई और उसने बताया कि उसके शरीर में खुजली हो रही है। गांधी जी ने उसके खुजली वाले स्थान को गंभीरता से देखा और पास खड़े एक विदेशी युवा डाक्टर से बोले कि इस महिला को नीम की पत्ती खिलाने के बाद छाछ पिलवा देना। गांधी जी प्राकृतिक चिकित्सा पर ही विश्वास करते थे। उस युवा डॉक्टर ने महिला को नीम की पत्ती खिलाई और कहा घर जाकर छाछ पी लेना।
तीन दिन बाद डॉक्टर उस महिला का हालचाल पूछने उसके घर गया। उसने पाया कि महिला की खुजली ठीक नहीं हुई है क्योंकि छाछ नहीं था उसके पास। उस डॉक्टर ने लौटकर गांधी जी को बताया, तो डाक्टर को डांटते हुए गांधी जी ने कहा कि मैंने तुमसे छाछ पिलाने को कहा था। मैं जानता था कि उस महिला के पासछाछ पीने के पैसे नहीं हैं। तुम ऐसे ही लोगों की सेवा करोगे। तब डॉक्टर ने क्षमा मांगी और उस महिला को छाछ और नीम की पत्तियां लाकर दिया।