Saturday, February 22, 2025

निराला की मां भीख मांगेगी तो गला दबा दूंगा


अशोक मिश्र

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला छायावादी काव्यधारा के प्रमुख कवियों में से एक थे। छायावादी कवियों में जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा, सुमित्रानंदन पंत और सूर्यकांत त्रिपाठी निराला प्रमुख माने जाते हैं। निराला का जन्म 21 फरवरी 1899 को बसंतपंचमी के दिन पश्चिम बंगाल के मेदिनीपुर में हुआ था। वैसे निराला का मूल गांव उन्नाव जिले का गढ़ाकोला गांव था। उनके पिता राम सहाय तिवारी मेदिनीपुर में नौकरी करते थे। कहते हैं कि निराला फक्कड़ स्वभाव के थे। उनमें आत्मसम्मान का भाव प्रबल था। निराला का जीवन हमेशा संघर्षमय ही रहा। एक बार की बात है। उन्हें अपनी पुस्तक की रायल्टी में प्रकाशक से बारह सौ रुपये हासिल हुए। उन दिनों बारह सौ रुपये ठीक-ठाक रकम हुआ करती थी। रायल्टी जेब में रखकर वह रिक्शे पर घर के लिए निकले। रास्ते में एक बूढ़ी महिला ने उनको देखकर कहा, बेटा, इस गरीब को कुछ भीख दे दो।

 यह सुनकर निराला ने रिक्शा रुकवाया और उसके पास पहुंचे। निराला ने कुछ कहने की जगह उस बूढ़ी औरत की गरदन पकड़ ली और कहा कि तुम सूर्यकांत त्रिपाठी को बेटा कह रही हो और भीख मांग रही हो। तुम निराला की मां होकर भीख कैसे मांग सकती हो। यह सुनकर बूढ़ी महिला सकपका गई। फिर निराला ने उस महिला की गरदन छोड़ते हुए कहा कि यदि मैं आपको पांच रुपये दे दूं, तो कब तक भीख नहीं मांगोगी। उसने कहा कि आज भर। उन्होंने कहा कि यदि दस रुपये दे दूं तो? महिला ने कहा कि दो दिन। निराला ने जेब से सारे रुपये निकाले और उसे देते हुए कहा कि खबरदार, आज के बाद भीख मांगी, तो गला दबा दूंगा। इसके बाद वह रिक्शे से महादेवी वर्मा के घर पहुंचे और उनसे रिक्शे का किराया दिलावाया। रिक्शेवाले ने महादेवी को सारा किस्सा बता दिया।




Friday, February 21, 2025

बीसवीं सदी के महान एथलीट थे जिम थोर्प

अशोक मिश्र

अमेरिका के महान खिलाड़ी जेम्स फ्रांसिस थोर्प का जन्म 28 मई 1887 हुआ माना जाता है। स्वीडन के राजा गुस्ताव वी ने तो इन्हें बीसवीं सदी में दुनिया का महान एथलीट कहा था। यह ओलंपिक में किसी एक खेल में बंधकर नहीं रहे। इन्होंने सभी तरह के खेलों में भाग लिया और स्वर्ण पदक जीता था। बात सन 1912 में स्वीडन के स्टॉकहोम में हुए समर ओलिंपिक्स की है। इन्होंने इस ओलिंपिक में डेकाथलॉन और पेंटाथलॉन दोनों में स्वर्ण पदक जीता था। जब ओलिंपिक की शुरुआत हो रही थी जिम थोर्प बहुत उत्साहित थे। उन्हें अपनी प्रतिभा पर पूरा विश्वास था। लेकिन जब उनके खेलने की बारी आई, तो उन्हें पता चला कि उनके जूते गायब हैं। किसी ने उनके जूते चुरा लिए थे। उन्होंने किसी तरह एक जोड़ी जूते का प्रबंध किया, लेकिन दोनों जूते बेमेल थे। एक उनके पैर के हिसाब से ढीला था। उन्हें लगा कि दौड़ते समय यह जूता निकल भी सकता है। अब क्या किया जाए। तभी उन्होंने देखा कि एक जोड़ी मोजा वहां रखा हुआ था। उन्होंने ढीले जूते वाले पैर में दो मोजे पहन लिए। यह थोड़ा सही था। इसी जूते को पहनकर उन्होंने उस ओलिंपिक्स की 15 प्रतिस्पर्धाओं में भाग लिया और आठ प्रतिस्पर्धाओं में स्वर्ण पदक जीते। पूरी दुनिया उनकी प्रतिभा और जुनून की कायल हो गई। लेकिन कहते हैं कि सफलता के पीछे कई बार दुर्भाग्य भी चला करता है। इसके कुछ साल बाद उन्होंने एक क्लब की ओर से बेसबाल खेलकर उन्होंने पांच डालर कमाए। इसकी भनक एक पत्रकार को लग गई। नतीजा यह हुआ कि उनसे सारे पदक ओलिंपिक संघ ने छीन लिए। जो खिलाड़ी दूसरे नंबर पर था, उसने भी पदक लेने से इनकार कर दिया। तीस साल बाद ओलिंपिक संघ ने जिम थोर्प को उनके पदक वापस किए।