Monday, August 4, 2025

आखिर जंग जीत गया सात बार हारने वाला राजा

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

हमारे देश के धर्मग्रंथों और विभिन्न भाषाओं में रचे गए साहित्य में एक बात जरूर कही गई है कि मन के हारे हार है। यदि आदमी मन मान गया कि वह हार जाएगा, तो निश्चित रूप से उसका हारना तय है। जब मनुष्य के दिलोदिमाग में यह बात घर कर जाती है कि वह किसी भी हालत में जंग या संकट से वह नहीं जीत सकता है, तो वह जीतती हुई बाजी भी हार जाता है। लेकिन जो व्यक्ति हारने के बाद भी हार नहीं मानता है, वह अपने अथक प्रयास से जंग हो या जीवन की समस्या उसको हरा सकता है।

 एक राजा की ऐसी ही कहानी है। राजा के राज्य के एक हिस्से पर पड़ोसी राजा ने हमला करके अपने अधिकार में ले लिया। राजा ने अपनी हारी हुई जमीन जीतने के लिए पड़ोसी राजा पर छह बार हमला किया, लेकिन वह हर बार पराजित हुआ। सातवीं बार तो उसकी हिम्मत ही टूट गई। हारने के बाद राजा अपने सैनिकों से बिछड़ गया। वह थका-हारा एक वन में पहुंच गया। 

जंगल काफी घना था। वह एक पेड़ के तने से टेक लेकर बैठ गया और अपनी पराजय के बारे में सोचने लगा। उसे अब विश्वास हो चुका था कि वह अपने पड़ोसी राजा को हरा नहीं सकता है। यह सब सोचते-सोचते उसे नींद आ गई। सुबह जब वह जागा, तो उसने देखा कि एक मकड़ी तने के पास जाला बना रही थी। जैसे मकड़ी थोड़ा ऊपर पहुंचती धागा टूट जाता और वह गिर जाती। 

राजा मकड़ी का यह करतब गौर से देखने लगा। दस-पंद्रह बार कोशिश करने के बाद मकड़ी अपने प्रयास में सफल हो गई। यह सब कुछ थोड़ी दूर खड़ा एक साधु भी देख रहा था। उसने राजा से कहा कि तुम भी ऐसा प्रयास क्यों नहीं करते हो। राजा ने कहा कि मैं सात बार हार चुका हूं। तब साधु ने कहा कि जंग हार कोई बड़ी बात नहीं है, मन से हार जाना बड़ी बात है। अपने सैनिकों को इकट्ठा करो और फिर लड़ो। राजा ने वैसा ही किया और इस बार वह जंग जीत गया।

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