Monday, August 18, 2025

ठीक से विरोध भी नहीं कर पातीं घरेलू हिंसा की शिकार महिलाएं

अशोक मिश्र

हमारे देश में घरेलू हिंसा और उत्पीड़न को लेकर शहरों की महिलाएं तो थोड़ा बहुत जागरूक हैं, लेकिन ग्रामीण क्षेत्र की ज्यादातर महिलाएं इसको लेकर सजग नहीं है। सामाजिक परंपराओं और सोच के चलते गांवों की नब्बे फीसदी महिलाएं इसे भाग्य का लेखा-जोखा मानकर जीवन भर उत्पीड़न सहती रहती है और इसके खिलाफ आवाज नहीं उठाती हैं। यदि कोई महिला इसके खिलाफ आवाज भी उठाना चाहे, तो घर की बड़ी बूढ़ी महिलाएं उसको समझा बुझाकर शांत कर देती हैं। 

शनिवार को पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने घरेलू हिंसा मामले की सुनवाई करते हुए टिप्पणी की है कि घरेलू हिंसा के मामले में अदालतों को शिकायत का आकलन करते समय लाइन के बीच पढ़ना जरूरी है क्योंकि ज्यादातर उत्पीड़न घर पर ही होती है और इसे साबित कर पाना महिला के लिए आसान नहीं होता है। हाईकोर्ट की यह बात बिल्कुल सही है। उत्पीड़न या घरेलू हिंसा होने पर जब मामला कचहरी तक पहुंचा है, तो घर के लोग पुरुष को ही बचाने की जुगत में लग जाते हैं। 

इसमें पीड़ित महिला की सास, ननद, देवरानी, जेठानी जैसी महिलाएं भी शामिल होते हैं। कई बार तो यह भी देखने में आया है कि उसके मां-बाप, बहन और भाभियां दबाव में या स्वेच्छा से पुरुष का ही साथ देते हैं। इस तरह के मामलों में अदालतें आम तौर पर यह देखती हैं कि पीड़ित महिला ने जो आरोप लगाए हैं, उसमें तथ्य कितने सही हैं। मामले में दम है या नहीं। ऐसे मामले में अदालत को फैसला लेते समय इन सभी परिस्थितियों का ध्यान रखना चाहिए। वैसे भी महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005 में घरेलू हिंसा की परिभाषा सीमित नहीं है। अधिनियम में शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक, मौखिक और आर्थिक हिंसा को भी घरेलू हिंसा के दायरे में रखा गया है। यदि कोई व्यक्ति मौखिक रूप से महिला को अपशब्द कहता है, उस को किसी भी प्रकार प्रताड़ित करता है, तो वह घरेलू हिंसा के दायरे में आता है। 

अगर किसी महिला को संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों के तहत किसी प्रकार की धन-संपत्ति, रुपये पैसे प्राप्त हैं, उसका उपयोग न करने देना आर्थिक उत्पीड़न माना जाएगा। यदि किसी कारणवश दंपति में तलाक हो गया हो तो पत्नी और बच्चों के भरण पोषण के लिए व्यवस्था अनिवार्य रूप से किया जाना चाहिए। दरअसल, घरेलू हिंसा और वैवाहिक जीवन के सुचारू रूप से न चलने का सबसे ज्यादा प्रभाव छोटे-छोटे बच्चों पर पड़ता है। 

उनका भविष्य अधर में लटक जाता है। कई बार तो बच्चे डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं। घरेलू हिंसा का प्रभाव न केवल उनकी पढ़ाई लिखाई पर पड़ता है, बल्कि उनके भविष्य पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

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