Thursday, August 14, 2025

एक विप्लवी क्रांतियोद्धा की तरह आजीवन संघर्ष करते रहे केशव प्रसाद शर्मा

 बस यों ही बैठे ठाले-21-----रचनाकाल -29 जुलाई 2020

अशोक मिश्र
कांग्रेस के नेताओं का ढुलमुल रवैया और सिद्धांतहीनता ब्रिटिश गुलामी की जंजीरों को तोड़ने और राष्ट्रीय जनतांत्रिक क्रांति में बाधा बनने लगी थी। इसी दौरान अनुशीलन समिति के तमाम वरिष्ठ क्रांतिकारी योगेश चंद्र चटर्जी, राजेंद्र लाहिड़ी, ठाकुर रोशन सिंह, राम प्रसाद बिस्मिल आदि काकोरी षड़यंत्र केस में गिरफ्तार करके जेल में डाल दिए गए, तो सन 1924-25 तक आते एचआरए की बागडोर सरदार भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद और सुखदेव जैसे विप्लवी नवयुवकों के हाथों में आ गई। एचआरए ने अपने गठन (जिसमें सबसे बड़ी भूमिका योगेश चंद्र चटर्जी की थी) के चार-पांच साल बाद अपने लक्ष्य और उद्देश्य में समाजवाद को शामिल कर लिया और अपना नाम हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी रख लिया। इससे पहले प्रख्यात क्रांतिकारी अवनि मुखर्जी रूसी क्रांति के नायक विल्यादिमिर इल्यीच लेनिन से मिल चुके थे।
अनुशीलन समिति के प्रमुख नेता अवनि मुखर्जी को प्रथम विश्व युद्ध के दौरान सिंगापुर में सैनिक विद्रोह कराने के अभियोग में फांसी की सजा सुनाई गई थी, लेकिन वे फांसी से एक दिन पहले जेल से भाग निकले थे। लेनिन और अवनि मुखर्जी की मुलाकात हुई। मुलाकात के दौरान अवनि मुखर्जी ने भारत के राष्ट्रीय स्वाधीनता संग्राम के लिए मदद मांगी, लेनिन ने अवनि मुखर्जी के सामने कुछ शर्तें रखीं। लेनिन ने कहा कि रूस की ओर से भारतीय स्वाधीनता संग्राम के लिए हथियार, साहित्य और रुपये-पैसे की मदद तो मिलेगी, लेकिन रूसी सेना भारत में क्रांतिकारियों के पक्ष में लड़ने नहीं जाएगी। यह लड़ाई आप लोगों को खुद लड़नी होगी। हां, अगर आप लोगों की लड़ाई में कोई दूसरा देश हस्तक्षेप करेगा, तो ऐसा नहीं होने दिया जाएगा। अब आप भारत जाकर अपने साथियों से विचार-विमर्श कर लें। तब मुझे आकर बताएं, जैसा होगा, वैसा किया जाएगा।
लेनिन से मुलाकात के बाद अवनि मुखर्जी भारत आए और बंगाल में अनुशीलन समिति के क्रांतिकारियों योगेश चंद्र चटर्जी, त्रिलोक्यनाथ चक्रवर्ती महाराज आदि से मिले। इसके बाद 1923 के अंतिम दिनों में अवनि मुखर्जी वापस रूस गए, लेकिन लेनिन से उनकी मुलाकात न हो सकी। 21 जनवरी 1924 को विल्यादिमीर इल्यीच लेनिन की असामयिक मृत्यु हो गई थी। इसके बाद रूस की बागडोर घोर अवसरवादी और प्रतिक्रियावादी स्टालिन के हाथों में आ गई थी।
अवनि मुखर्जी के बारे में इसके बाद कोई जानकारी नहीं मिलती है। शायद रूस के किसी रजिस्टर में लिखा हुआ है कि वे लंबी छुट्टी पर चले गए हैं। रूस में स्टालिन के शासन काल में जिसको फांसी दी जाती थी या साइबेरिया भेज दिया जाता था, उसके बारे में उस रजिस्टर में यही लिखा जाता था कि अमुक व्यक्ति लंबी छुट्टी पर चला गया है। रूस की सत्ता हाथ में आने के बाद स्टालिन का व्यवहार तानाशाहों जैसा होता गया। लेनिन की वैश्विक समाजवादी क्रांति की अवधारणा, लक्ष्य और सिद्धांत के विपरीत स्टालिन ने एक देशीय समाजवाद और शांति पूर्ण सह अस्तित्व का नारा देकर रूसी क्रांति के साथ विश्वासघात किया। पूरी दुनिया में समाजवादी क्रांतियां कराने का कार्यभार त्यागकर स्टालिन के निर्देश पर तृतीय इंटरनेशनल ने 1928 में रूस को बचाना प्रमुख कार्यभार तय किया।
इधर भारत में काकोरी षडयंत्र के केस में अनुशीलन समिति के वरिष्ठ क्रांतिकारियों के गिरफ्तार होकर जेल भेज दिए जाने के परिणाम स्वरूप सरदार भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, राजगुरु और सुखदेव, भगवती चरण वोहरा आदि नए युवकों ने एचआरए का नेतृत्व संभाला। तत्कालीन समय में अनुशीलन समिति के प्रमुख संगठनकर्ता योगेश चंद्र चटर्जी, केशव प्रसाद शर्मा और अन्य क्रांतिकारियों का झुकाव मार्क्सवाद और लेनिनवाद की तरफ हो चुका था। वे जेलों में इससे संबंधित साहित्य का अध्ययन करने लगे थे।
एचआरए से जुड़े क्रांतिकारियों ने दिल्ली के फिरोज शाह कोटला मैदान में 7-8 अगस्त 1928 में हिंदुस्तान रिपब्लिकन आर्मी की अगली कड़ी के रूप में उसका नाम हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी रख लिया। याद रहे कि एचआरए का घोषणापत्र शचींद्र नाथ सान्याल ने रिवोल्यूशनरी नाम से लिखा था। सान्याल आध्यात्मिक प्रवृत्ति के थे। चूंकि एचआरए का घोषणा पत्र रिवोल्यूशनरी पीले कागज पर लिखा गया था, इसलिए इतिहास में उसे यलो पेपर के नाम से भी जाना जाता है। एचएसआरए का घोषणा पत्र लिखने का कार्यभार अमर विप्लवी भगवती चरण बोहरा को दिया गया और उन्होंने फिलास्फी आफ बम (बम का दर्शन) नाम से घोषणा पत्र लिखा। (प्रसिद्ध क्रांतिकारी दुर्गा भाभी इन्हीं की पत्नी थीं। बाद में उन्होंने प्रसिद्ध क्रांतिकारी योगेश चंद्र चटर्जी से विवाह कर लिया था। कहा जाता है कि जापान से रास बिहारी बोस का आजाद हिंद फौज के लिए बुलावा आने पर योगेश बाबू को ही जापान जाना था, लेकिन जापान का पता दुर्गा भाभी ने जानबूझ कर छिपा दिया था। इस पर आवेश में आकर योगेश दा ने दुर्गा भाभी को तलाक दे दिया था। यह किस्सा योगेश चंद्र चटर्जी के बाद आरएसपीआई के महामंत्री और अनुशीलन समिति के सदस्य क्रांतिकारी केशव प्रसाद शर्मा जी अक्सर बताया करते थे।
एक बात यहां गौर करने लायक है कि 26 जुलाई 1945 को ब्रिटेन में हुए आम चुनाव में विस्टन चर्चिल की करारी हार के बाद जब क्लेमेंट एटली प्रधानमंत्री चुने गए, तो उन्होंने कहा कि वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए भारत को अब स्वतंत्र कर देने में ही भलाई है, तो सन 1946 में ब्रिटिश हुकूमत ने सभी राजनीतिक बंदियों को छोड़ने का फैसला किया। उसमें आरएसपीआई के महामंत्री योगेश चंद्र चटर्जी और केशव प्रसाद शर्मा सहित तमाम क्रांतिकारियों के नाम शामिल थे। ये सभी रिहा कर दिए गए और कांग्रेस ने 15 अगस्त 1947 को समझौते के आधार पर कथित आजादी हासिल की। अनुशीलन समिति और आरएसपीआई के क्रांतिकारी इस आजादी को आजादी मानने को तैयार नहीं थे।
25 जनवरी 1948 को क्रांतिकारी केशव प्रसाद शर्मा इलाहाबाद पहुंचे और 26 जनवरी 1948 को वे कथित आजाद भारत में गिरफ्तार कर लिए गए। उस समय महात्मा गांधी भक्त गोविंद बल्लभ पंत उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री थे। लाल बहादुर शास्त्री पंत मंत्रिमंडल में पुलिस एवं परिवहन मंत्री थे। राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन उत्तर प्रदेश के विधान सभा अध्यक्ष थे। जब क्रांतिकारी केशव प्रसाद शर्मा की गिरफ्तारी की जानकारी उत्तर प्रदेश के विधानसभा अध्यक्ष राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन (बाबू जी) और स्वामी सहजानंद सरस्वती को मिली, तो उन्होंने शर्मा जी की गिरफ्तारी का विरोध किया।
लाल बहादुर शास्त्री ने तब टंडन जी से कहा कि केशव प्रसाद शर्मा को मैं भी जानता हूं। यदि उन्हें आजाद कर दिया गया, तो या तो कांग्रेस रहेगी या फिर शर्मा जी। शर्मा 1950 में रिहा किए गए। क्रांतिकारी शर्मा जी ने आजीवन स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का ताम्रपत्र और सुख सुविधाएं नहीं ली। पूछने पर कहा करते थे कि मैंने स्वाधीनता संग्राम में ताम्रपत्र और सुख सुविधाएं जुटाने के लिए भाग नहीं लिया था। बस अफसोस यह है कि हिंदुस्तान को क्रांतिकारियों के रास्ते आजादी नहीं मिली। कांग्रेस ने ब्रिटिश हुकूमत से समझौता किया और हिंदुस्तान कथित रूप से आजाद हो गया। राष्ट्रीय जनतांत्रिक क्रांति के बाद विप्लवी समाजवादी क्रांति की प्रक्रिया को कांग्रेस ने भंग कर दी।
शर्मा जी आजीवन एक विप्लवी क्रांतियोद्धा की तरह संघर्ष करते रहे। उनकी मृत्यु 1986 (जहां तक मुझे याद है) में पटना के एक नर्सिंग होम में हो गई थी।) राम प्रसाद बिस्मिल ने अपनी फांसी से पूर्व हिंदुस्तान के नौजवानों के लिए कहा कि आज हिंदुस्तान के क्रांतिकारी नौजवानों को बम और पिस्तौल की जगह मार्क्सवाद और लेनिनवाद को हथियार बनाकर लड़ने की जरूरत है। यही वजह थी कि देश में ब्रिटिश हुकूमत की जेलों में जितने भी क्रांतिकारी थे, वे मार्क्सवाद और लेनिनवाद के गहन अध्ययन में जुट गए। इन क्रांतिकारी तत्वों ने अनुकूल मौका समझ कर नेता जी सुभाष चंद्र बोस को कांग्रेस में शामिल होकर अपने लक्ष्य और उद्देश्य के लिए राजनीतिक मंच के तौर पर कांग्रेस का उपयोग करने के लिए प्रेरित किया।

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