Saturday, August 2, 2025

प्रभु! आप तो जा रहे हैं, मेरा क्या होगा?

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

कहते हैं कि जो व्यक्ति जीवन और मृत्यु में भेद न करे, वह बुद्धत्व को प्राप्त कर लेता है। ज्ञान प्राप्ति के बाद महात्मा बुद्ध का जीवन एक स्थिर नदी के समान हो गया था। शोक और हर्ष में सदैव एक समान रहा है। वह मृत्यु को यात्रा के दौरान आने वाले एक पड़ाव की तरह मानते थे। उनका मानना था कि यात्रा तो अनंत है, उसमें कई पड़ाव आएंगे, जाएंगे, इन पड़ावों से भयभीत होकर भागना क्या? 

बात उस समय की है, जब महात्मा बुद्ध के जीवन का आखिरी दिन था। उस दिन भी तथागत एकदम शांत और स्थिर थे। मानो उनके शरीर में कोई पीड़ा न हो। हमेशा की तरह चेहरे पर छाई रहने वाली स्निग्ध मुस्कान उस समय भी विराजमान थी। कुटी के बाहर बुद्ध का प्रिय शिष्य आनंद अपने गुरु की मौत की आशंका में बैठा जार-जार रो रहा था, लेकिन उसके मुंह से आवाज नहीं निकल रही थी ताकि महात्मा बुद्ध न जान जाएं। 

अचानक तथागत के नेत्र खुले, उन्होंने शांत चित्त से आनंद को आवाज दी। आनंद अंदर आया और आर्द्र स्वर में बोला, प्रभु! आप तो जा रहे हैं। मेरा क्या होगा? यह सुनकर बुद्ध मुस्कुराए और बोले, आनंद! ऐसा मत कहो। मैं कोई अकेला बुद्ध तो हूं नहीं। अनेक बुद्ध आए और अपना कर्तव्य निभाकर चले गए। भविष्य में भी कई बुद्ध आएंगे। वह भी अपना कर्तव्य निभाकर चले जाएंगे। यह तो यात्रा है जो अनंतकाल तक चलती रहेगी। हो सकता है कि मेरे बाद तुम ही बुद्धत्व प्राप्त कर लो। 

इतना कहकर तथागत हमेशा के लिए मौन हो गए। बुद्ध की मौत के बाद आनंद की चेतना जाग्रत हुई। उसने बुद्ध के उपदेशों को न केवल याद रखा, बल्कि जीवन में भी उतारना शुरू कर दिया। वह तप, साधना, आत्मपरीक्षण में पूरी तरह लीन हो गया। और एक दिन वह भी आया जब उसने परमज्ञान प्राप्त कर लिया। बुद्ध के जीवित रहते वह बहुत ज्यादा ज्ञान अर्जित नहीं कर सका था।

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