अशोक मिश्र
हमारे देश के मंदिरों में देवदासी रखने की प्रथा के उन्मूलन में सबसे अहम भूमिका निभाने वाली डॉ. मुत्तुलक्ष्मी रेड्डी थीं। उनकी मां चंद्रामाई देवदासी समुदाय से आती थीं। उन्होंने बाल विवाह, महिलाओं और बच्चों की तस्करी रोकने के लिए कानून बनाने में भी अभूतपूर्व भूमिका निभाई थी। लड़कियों के लिए विवाह की आयु 14 वर्ष करने और उनकी अनुमति लेने का विधेयक भी लेकर आई थीं।
वह जीवनभर महिलाओं के उत्थान और विकास के लिए प्रयास करती रहीं। लड़कों के स्कूल में पढ़ने वाली मुत्तुलक्ष्मी तमिलनाडु की पहली लड़की थीं। उनके पिता महाराजा कालेज के प्राचार्य थे। वह शिक्षा का महत्व भलीभांति जानते थे। यही वजह है कि उन्होंने अपनी बेटी को न केवल पढ़ाया लिखाया बल्कि हमेशा आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा दी। वह पर्देवाली गाड़ी में बैठकर स्कूल जाती थीं।
तमिलनाडु की रियासत पुदुकोट्टे में 30 जुलाई 1886 को मुत्तुलक्ष्मी का जन्म हुआ था। मुत्तुलक्ष्मी ने मैट्रिक की परीक्षा अच्छे नंबरों से पास की, जबकि उन दिनों मैट्रिक की परीक्षा बहुत विद्यार्थी पास कर पाते थे। समाज के तानों और कठोर वचनों की परवाह न करते हुए उनकी मां चंद्रामाई ने अपनी बेटी को डॉक्टरी पढ़ने की इजाजत दी, तो होशियार मुत्तुलक्ष्मी के लिए पुदुकोट्टे के महाराज ने भागदौड़ करके सन 1907 में उनका प्रवेश मद्रास मेडिकल कालेज में करवा दिया।
सन 1927 में वह मद्रास विधान काउंसिल की सदस्य बनीं। समय आने पर उन्हें सेंदुरा रेड्डी से विवाह किया। मुत्तु ने राजनीतिक क्षेत्र में भी बहुत सारे सुधार किए। देश आजाद होने पर 1956 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मविभूषण अलंकरण से सम्मानित किया।
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