हरियाणा की सैनी सरकार ने सूबे के करीब 10 लाख कुम्हारों को राहत देने का फैसला किया है। बुधवार यानी 13 अगस्त को प्रदेश सरकार कुम्हारों को पात्रता प्रमाण पत्र देने जा रही है। इसके लिए कुरुक्षेत्र में राज्य स्तरीय कार्यक्रम आयोजित किया गया है जिसमें कुरुक्षेत्र, कैथल, करनाल और यमुनानगर के कुछ पात्र व्यक्तियों को मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी अपने हाथों से पात्रता प्रमाण पत्र प्रदान करेंगे। बाकी जिलों में उन्होंने प्रदेश के मंत्रियों, सांसदों और विधायकों की ड्यूटी लगा दी है।
यह लोग तय किए गए जिले में कुम्हारों को पात्रता प्रमाण पत्र वितरित करेंगे। इसके लिए प्रदेश भर में दो हजार गांव चिन्हित किए गए हैं जिनकी पंचायती जमीन पर कुम्हार अपने बर्तन बना सकेंगे। हमारे देश और प्रदेश में सदियों से कुम्हार मिट्टी के बर्तन बनाते आए हैं। देश में मिट्टी से बर्तन बनाने की कला कब विकसित हुई थी, यह सटीकता से कह पाना थोड़ा मुश्किल है। लेकिन प्राचीनकाल के स्थलों की खुदाई में पाए जाने वाले मृदभांड यानी मिट्टी के बर्तनों की कार्बन डेटिंग से पता चलता है कि वृहत्तर भारत में 3300 से 1700 ईसा पूर्व तक मिट्टी के बर्तन बनने लगे थे।
भारत में मृदा भांड (मिट्टी के बर्तन) बनाने की कला सिंधु घाटी सभ्यता के समय से ही विकसित मानी जाती है। इस काल में, मोहनजोदड़ो और हड़प्पा जैसे शहरों में मिट्टी के बर्तनों का उपयोग घरेलू और धार्मिक कार्यों के लिए किया जाता था। हरियाणा में सिंधु घाटी सभ्यता के समय से ही मिट्टी के बर्तन बनाने की कला मौजूद थी। कुणाल जैसे स्थलों पर खुदाई करने के बाद पुरातत्वविदों को हड़प्पा और पूर्व-हड़प्पा काल के मृदा भांड मिले हैं जिनसे पता चलता है कि हरियाणा सही पूरे भारत में पूर्व हड़प्पा काल से ही मिट्टी के बर्तन बनाए जाने लगे थे। सिरसा और उसके आसपास के क्षेत्रों में भी खुदाई में रंग महल संस्कृति के मृदा भांड मिले हैं, जो इस क्षेत्र में मृदा भांड बनाने की कला के विकास को दर्शाते हैं।
मध्ययुगीन काल में भी मृदा भांड बनाने की कला हरियाणा में जारी रही, जैसा कि सिरसा में खुदाई में मिले बर्तनों से पता चलता है। आज भी हरियाणा में कई स्थानों पर पारंपरिक रूप से मिट्टी के बर्तन बनाए जाते हैं। यह कला हरियाणा की संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रही है और इसका इतिहास सिंधु घाटी सभ्यता जितना पुराना है। यही वजह है कि सैनी सरकार ने इस प्राचीन कला को पुनर्जीवित करने के लिए कुम्हारों को प्रश्रय देने का फैसला किया है। अब प्रदेश के लगभग दस लाख कुम्हार इस प्राचीन कला को सुरक्षित रखेंगे और प्रदेश को प्लास्टिक बर्तनों से मुक्ति दिलाएंगे जो पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं।
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