Thursday, August 28, 2025

लोगों की जान बचाने को किया आत्मसमर्पण


बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

हमारे देश को स्वतंत्रता दिलाने में कितने वीरों ने अपने प्राण न्यौछावर किए, इसकी कोई सटीक गणना नहीं हो सकती है। इसका कारण यह है कि हमारे देश की आजादी की लड़ाई दुनिया के इतिहास की सबसे लंबी लड़ाई थी। अगणित वीरों ने अपने प्राण देश को स्वतंत्र कराने के लिए बलिदान कर दिए थे। इन्हीं वीरों में से एक थे नारायण सिंह बिंझवार। 

इन्हें छत्तीसगढ़ का पहला आदिवासी शहीद होने का गौरव हासिल है। इन्होंने अपने इलाके के लोगों को ब्रिटिश हुकूमत के जुल्म से बचाने के लिए मजबूर होकर आत्म समर्पण करना पड़ा था। छत्तीसगढ़ के सोनाखान के आदिवाीस जमींदार राम राय के घर में 1795 को नारायण सिंह बिंझवार का जन्म हुआ था। पिता की मृत्यु के बाद 35 वर्ष की आयु में उन्हें सोनाखान की जमींदारी संभालने को मिली थी। बात 1856 की है। उन दिनों छत्तीसगढ़ में अकाल पड़ा था। 

कई वर्षों तक बरसात न होने की वजह से अनाज पैदा नहीं हुआ था। जिसके पास बचत में अनाज था, उससे काम चलाया, लेकिन बचत वाला अनाज कितने दिन काम आता। लोगों के घरों में अनाज ही नहीं रह गया। भूखे मरने की नौबत आ गई, तो नारायण सिंह ने उस इलाके के अमीर व्यापारी माखन से गरीबों को अनाज देने को कहा, लेकिन उसने मना कर दिया। उन्होंने व्यापारी का अनाज गोदाम लुटवा दिया। 

उन्हें गिरफ्तार करके रायपुर जेल में डाल दिया गया। अपने साथियों की मदद से वह जेल से भाग निकले और अंग्रेजों के खिलाफ एक छोटी सेना गठित करके देश को आजाद कराने का प्रयास करने लगे। खिसियाए अंग्रेजों ने जनता पर जुल्म इतना ढाया कि यह जुल्म देखकर नारायण ने आत्म समर्पण करना उचित समझा। दस दिसंबर 1857 को उन्हें तोप से उड़ा दिया गया।

1 comment:

  1. ऐसे जाने कितने सच्चे देशभक्तों की कुर्बानी की बदौलत आज़ादी का सुख भोग रहे हैं हम।
    शत-शत नमन है ऐसे वीरों.को।
    आभार आपका।
    सादर।
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    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २९अगस्त २०२५ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।


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