अशोक मिश्र
हेमनदास कालाणी यानी हेमू कालाणी का जन्म 23 मार्च 1923 को एक सिंधी परिवार में हुआ था। सिंध के जिस सक्कर गांव में हेमू का जन्म हुआ था, आज वह पाकिस्तान में है, लेकिन उन दिनों बांबे प्रेसीडेंसी का हिस्सा था। वह पेसुमल कालाणी और जेठी बाई के पुत्र थे। उन दिनों भारत में महात्मा गांधी का विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार और असहयोग आंदोलन बड़े जोरों पर चल रहा था।
इसका प्रभाव हेमू कालाणी पर भी पड़ा। उन्होंने किशोरावस्था में ही विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार आंदोलन भाग लेना शुरू कर दिया था। हेमू महात्मा गांधी द्वारा चलाए गए अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन में भी भाग लिया था। सिंध प्रांत में यह आंदोलन इतना बढ़ा कि उसे दबाने के लिए अंग्रेजों को सैन्य टुकड़ी भेजनी पड़ी। इसी दौरान हेमू कालाणी को यह जानकारी मिली कि अंग्रेजों की हथियार से भरी एक रेलगाड़ी 22 अक्टूबर 1942 को इधर से गुजरने वाली है। बस फिर क्या था?
हेमू कालाणी ने उन हथियारों को लूटने और क्रांतिकारियों तक यह हथियार पहुंचाने की योजना बनाई। उन्होंने रेल की पटरियों की फिश प्लेटें तोड़ने और हथियारों को लूटने प्लानिंग की। उन्होंने दो और साथियों को इस काम के लिए तैयार किया। पहले तो उन लोगों ने इस काम से इंकार कर दिया। लेकिन बाद में वह मान गए। फिश प्लेटें निकालने के बाद रेलगाड़ी आती उससे पहले पुलिस आ गई।
हेमू के दोनों साथी तो भाग गए, लेकिन हेमू पकड़ लिए गए। अंग्रेजों ने उन्हें फांसी की सजा सुनाई। फांसी वाले दिन हेमू सवेरे उठे। हंसते-गाते फांसी की जगह पर पहुंचे। फांसी चढ़ाने वाले मजिस्ट्रेट ने पूछा कि तुम्हारी कोई अंतिम इच्छा है? उन्होंने कहा कि मैं भारत माता की जय बोलना चाहता हूं। इसके बाद जेल परिसर में भारत माता की जय का नारा गूंज उठा। 19 साल उम्र में 21 जनवरी 1943 को उन्हें फांसी पर चढ़ा दिया गया।
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