Friday, August 22, 2025

सिकंदर को जवाब देते नहीं बना

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

दार्शनिक डायोजनीज का जन्म यूनान के सिनोप में 324 ईसा पूर्व हुआ माना जाता है। यह अपनी प्रकृतिवादी विचारों और सनक की वजह से प्रसिद्ध हुए। कहते हैं कि यह एक बड़े से घड़े में रहते थे और दिन में लालटेन जलाकर घूमते रहते थे। वह हिकेसियास के पुत्र थे जो विभिन्न मुद्राओं की अदला-बदली करते थे। हिकेसियास अपने समय में काफी अमीर माने जाते थे। 

जब डायोजनीज ने भी अपने पिता की तरह मुद्रा की अदला-बदली के कारोबार में कदम रखा, तो उन पर और उनके पिता पर मुद्रा को विकृत करने का आरोप लगा और डायोजनीज को देश निकाला दे दिया गया। डायोजनीज प्रकृतिवादी दार्शनिक थे और भौतिक सुखों को त्यागने की बात करते थे। एक बार की बात है। मकदूनिया के सम्राट सिकंदर ने उनसे पूछा कि क्या मैं जान सकता हूं कि आप इतने प्रसन्न कैसे रहते हैं? आखिर आपके पास ऐसी कौन सी वस्तु है जिसकी वजह से आप हमेशा खुश रहते हैं? 

डायोजनीज ने सिकंदर की बात का जवाब देने की जगह सवाल करते हुए कहा कि तुम खुश क्यों नहीं रहते हो? तुम्हें किस बात की चिंता है जो तुम्हें खुश होने से रोकती है। सिकंदर ने कहा कि मुझे अभी पूरी दुनिया जीतनी है। मुझे विश्व सम्राट बनना है। पूरी दुनिया को जीतने से पहले मैं खुश कैसे हो सकता हूं। जब तक मेरा लक्ष्य पूरा नहीं हो जाता, तब तक मैं चैन से नहीं बैठ सकता हूं। 

तब डायोजनीज ने पूछा कि जब तुम पूरी दुनिया जीत लोगे, तब क्या करोगे? सिकंदर ने कहा कि तब मैं खुश हो जाऊंगा। मैं भी आपकी तरह आनंद उठाऊंगा। इस पर डायोजनीज ने कहा कि तो इसके लिए तुम्हें दुनिया जीतने की क्या जरूरत है। अभी से आनंद उठा सकते हो। तुम्हें किसने रोका है। यह सुनकर सिकंदर चुप हो गया।

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