Thursday, August 7, 2025

शुभ-अशुभ मन का वहम है देवि!

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

स्वामी विवेकानंद का वैसे तो वास्तविक नाम नरेंद्र नाथ दत्त था, लेकिन वह पूरी दुनिया में विवेकानंद के नाम से ही मशहूर हुए। स्वामी विवेकानंद वेदांत दर्शन के विख्यात आध्यात्मिक गुरु थे। उन्होंने सनातन धर्म के प्रचार प्रसार का हर संभव प्रयास किया, लेकिन उन्होंने पाखंड को कभी मान्यता नहीं दी। 

उनका मानना था कि पाखंड से धर्म में विकृति आती है। वे दर्शन, धर्म, इतिहास, सामाजिक विज्ञान, कला और साहित्य सहित विषयों की पुस्तकों का बड़े उत्साह के साथ अध्ययन करते थे। वह नारी का बहुत सम्मान करते थे। हर स्त्री में उन्हें अपनी मां दिखाई देती थी। एक बार की बात है। 

स्वामी विवेकानंद के पास एक स्त्री आई और उसने कहा कि स्वामी जी! पता नहीं क्यों कल से ही मेरी दायीं आंख फड़क रही है। मेरे साथ कुछ अशुभ होने वाला है। आप मुझे कुछ ऐसा उपाय बताएं जिससे मेरे साथ होने वाला अशुभ न हो। स्वामी जी ने बड़े आदर के साथ उस महिला से कहा कि मेरी नजर में शुभ-अशुभ जैसी कोई बात नहीं होती है। यह सब मन का वहम है। दुनिया में हर समय कुछ न कुछ अच्छी-बुरी घटनाएं होती हैं जिन्हें लोग शुभ अशुभ मान लेते हैं। उस महिला ने कहा कि नहीं, ऐसा नहीं है। पिछले काफी दिनों से मेरे साथ अशुभ हो रहा है, जबकि मेरे पड़ोसी के यहां शुभ ही शुभ हो रहा है। 

यह सुनकर स्वामी विवेकानंद ने कहा कि यह आपका नजरिया है। यदि कोई घटना किसी के लिए शुभ है, तो दूसरे के लिए अशुभ हो सकती है। अब जैसे किसी कुम्हार ने कच्चे बर्तन बनाकर धूप में सूखने के लिए रख दिए। वह चाहता है कि धूप निकली रहे। वहीं किसान चाहता है कि खूब बारिश हो, ताकि उसकी खेती लहलहा उठे। अब धूप का निकलना कुम्हार के लिए शुभ और किसान के लिए अशुभ हो गया। यह सुनकर महिला ने कहा कि मैं समझ गई आपकी बात।

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