Wednesday, August 13, 2025

भगवान की ही छवि है इंसान

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

पूरी दुनिया में स्वामी विवेकानंद की ख्याति महान दार्शनिक के रूप में थी।  गीता, वेद और उपनिषदों के बारे में विवेकानंद काफी रुचि लेते थे। अमेरिका के शिकागो में हुए धर्म संसद में भाग लेकर उन्होंने भारत का नाम पूरी दुनिया में फैला दिया था। हिन्दू दर्शन का उन्होंने पूरे देश में प्रचार किया। उनके मन में हमेशा सच और भगवान को लेकर कई सवाल उठते रहते थे जिसके बारे में वह अपने गुरु स्वामी रामकृष्ण परमहंस से पूछते रहते थे। वह बिना सबूत के किसी बात पर विश्वास नहीं करते थे। 

एक दिन की बात है। स्वामी विवेकानंद अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस के पास आए और कहा कि वह सच को जानना चाहते हैं। परमहंस बोले, पुत्र! सच तक पहुँचना आसान नहीं है, तुम्हें इस रास्ते पर धीरज रखते हुए आगे बढ़ना होगा। उन्होंने विवेकानंद को भगवान का ध्यान करने की सलाह दी। विवेकानंद अपने गुरु की बात मान कर ध्यान का अभ्यास करने लगे। उन्होंने लगातार कई दिनों तक ध्यान का अभ्यास किया। 

एक दिन विवेकानंद, भगवान में ध्यान लगा कर बैठे थे। वह अचानक चिल्ला उठे, मेरा शरीर कहाँ है! वो अपने शरीर को महसूस नहीं कर पा रहे थे और खुद को उससे अलग देख रहे थे। वह खुद को आत्मा की तरह महसूस कर रहे थे। उनके गुरु ने कहा, मैंने तुम्हें वो दे दिया जो तुम्हें चाहिए था। इस घटना के बाद विवेकानंद यह समझ गए कि सच यही है कि हम इस शरीर से बढ़कर हैं, हम आत्मा हैं। 

हम भगवान से अलग नहीं हैं बल्कि उनका ही एक रूप हैं। विवेकानंद ने सबको इसी सच तक पहुँचाने की कोशिश की। उन्होंने हमें समझाया कि इंसान भगवान की ही छवि है। अगर हम पूरे मन से ढूँढें तो पाएँगे कि हम भी भगवान जैसे ही महान और अनंत हैं।  विवेकानन्द के जीवन के इस घटना से हमें यह सीख मिलती है कि एक सच्चे गुरु की मदद से ही हम सच या भगवान तक पहुँच सकते हैं।

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