Saturday, August 16, 2025

ईश्वर को पाना है, तो मोम की तरह बनो

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

तेरहवीं शताब्दी में फारसी साम्राज्य के वाल्ख (वर्तमान अफगानिस्तान) में जलालुद्दीन रूमी का जन्म 30 सितंबर 1207 में हुआ था। वह सूफी फकीर, न्यायविद्, फारसी कवि और धर्मशास्त्री थे। भारत के पड़ोसी राज्य में पैदा होने की वजह से भारतीय दर्शन का भी रूमी पर अच्छा खासा प्रभाव था। 

रूमी सूफीवाद के एक प्रमुख स्तंभ थे। सूफीवाद में प्रेम, एकता और ईश्वर से मिलन को प्रधानता दी गई है। इनकी प्रसिद्ध साहित्यिक रचना मनसवी है जिसमें उन्होंने सूफीवाद से संबंधित आध्यात्मिक कविताएं और कहानियां संग्रहीत हैं। कहा जाता है कि रूमी की मौत 13 दिसंबर 1273 को कोन्या वर्तमान तुर्की में हुई थी जहां आज भी उनकी कब्र विराजमान है। इस कब्र को देखने दुनिया भर के  पर्यटक तुर्की जाते हैं। 

एक बार की बात है। एक युवक रूमी के पास आया और उसने कहा कि वह ईश्वर को पाना चाहता है, उनसे मिलना चाहता है, लेकिन जब भी वह ध्यान लगाने के लिए बैठता है, तो उसके मन में बुरी भावनाएं पैदा होने लगती हैं। उसका ध्यान भटकने लगता है। मुझे कई बार ऐसा लगता है कि मैं ईश्वर को नहीं प्राप्त कर पाऊंगा। यह सुनकर रूमी ने अपने एक शिष्य से जलता हुआ दीपक मंगवाया और उस युवक से कहा कि तुम इस दीपक की लौ को ध्यान से देखो। यह लौ चारों ओर अपना प्रकाश बिखेर रही है। लौ भी बहुत शांत दिख रही है। यदि तुम इसमें अंगुली डालोगे, तो क्या होगा? 

युवक ने कहा कि अंगुली जल जाएगी। रूमी ने कहा कि क्या तुम कह सकते हो कि लौ बुरी है। या तुमने बिना जाने बूझे लौ में अंगुली डाली, इसलिए अंगुली जल गई। ईश्वर भी इस लौ की तरह है। अगर तुम्हें ईश्वर को पाना है, तो तुम्हें मोम की तरह होना होगा। तब ईश्वर तुम्हें अपना लेंगे। युवक की समझ में अब बात आ गई थी।

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