Saturday, August 16, 2025

वैज्ञानिक समाजवाद को जानने-समझने को उद्यत होने लगे युवा

 बस यों ही बैठे ठाले---23---रचनाकाल----1 अगस्त 2020

अशोक मिश्र
जब पहला विश्व युद्ध (28 जुलाई 1914 से 11 नवंबर 1918) छिड़ा, तो उसका प्रभाव पूरी दुनिया पर पड़ना ही था। भारत में इसका प्रभाव पड़ा। भारत में पूंजीपति वर्ग ने अपने व्यावसायिक हितों की पूर्ति के लिए विश्व युद्ध काल में ब्रिटिश हुकूमत से अधिक से अधिक रियायतें हासिल करने की कोशिश करनी शुरू कर दी। इसीलिए विश्व युद्ध काल में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, हिंदू महासभा और मुस्लिम लीग ने ब्रिटिश हुकूमत का न केवल खुलेआम समर्थन किया, बल्कि उसका सहयोग भी किया। वहीं दूसरी ओर भारत के क्रांतिकारी विश्वयुद्ध को अंग्रेजी हुकूमत को उखाड़ फेंकने का एक बेहतरीन अवसर जानकर अपने लक्ष्य और उद्देश्य की पूर्ति के लिए प्राणपण से लग गए थे। इसलिए वे भारतीय सैनिकों को विद्रोह के लिए तैयार करने की कोशिश करने लगे।
ब्रिटिश हुकूमत की बर्बरता और आंतक के खिलाफ सशस्त्र बगावत करने लगे। वे भारत की आम जनता को क्रांति के पक्ष में खड़ा करने की कोशिश में लग गए। इसी बीच सात नवंबर 1917 को रूस में लेनिन के नेतृत्व में क्रांति हुई और उन्होंने पूरी दुनिया के क्रांतिकारी संगठनों और क्रांतिकारियों के लिए नारा दिया कि विश्व युद्ध को गृहयुद्ध यानी समाजवादी क्रांति में बदलो।
रूस में पूंजी की सत्ता को मिटा कर श्रम की सत्ता की स्थापना हुई थी। इसका प्रभाव पूरी दुनिया पर प्रभाव पड़ा। भारत फिर इससे अछूता भला कैसे रह सकता था। भारत के क्रांतिकारियों, अनुशीलन समिति और उसके मूर्धन्य नेताओं द्वारा गठित विकसित पहले एचआरए और उसकी अगली कड़ी के रूप में एचएसआरए ने रूसी क्रांति से प्रेरणा लेकर देश के नवयुवकों को मार्क्सवादी लेनिनवादी दर्शन और सिद्धांतों से लैस करने का प्रयास करना शुरू किया।
उधर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ब्रिटिश हुकूमत के साथ सहयोगात्मक रवैया अपनाकर भारतीय पूंजीपतियों के व्यावसायिक हितों की प्रतिपूर्ति का प्रयास करती रही। लेकिन इसी कांग्रेस में कुछ नेता ऐसे भी थे, जो महात्मा गांधी के विचार और कार्यक्रम से अपना तालमेल नहीं बिठा पा रहे थे। उनके लिए वहां रहकर कार्य करना मुश्किल हो रहा था। हालांकि ये नेता अनुशीलन समिति के मूर्धन्य नेता थे और कांग्रेस को राष्ट्रीय जनतांत्रिक क्रांति के पक्ष में एक अनुकूल मंच की तरह उपयोग करने की योजना बनाकर आए थे।
महात्मा गांधी इस बात को शायद समझ चुके थे और यही वजह थी कि कांग्रेस में ऐसी परिस्थितियां पैदा की जा रही थीं जिससे क्रांतिकारी नेता या तो कांग्रेस छोड़कर चले जाएं या फिर वे गांधी के हिसाब से कार्य करें। ऐसे में भारत के क्रांतिकारी राष्ट्रीय स्तर पर एक मार्क्सवादी–लेनिनवादी विचारों से लैस एक पार्टी की आवश्यकता महसूस कर रहे थे। हालांकि उन परिस्थितियों ऐसा संभव नहीं हो सका, लेकिन बाद में अनुशीलन समिति के शीर्ष नेताओं ने बिहार के रामगढ़ (अब झारखंड में) अप्रैल 1940 में आरएसपीआई का गठन किया।
ट्रेड यूनियन डिस्प्यूट बिल के विरोध 6 अप्रैल 1929 में असेंबली हाल में अमर शहीद भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त के बम फेंकने और क्रांतिकारी भाषण देने का पूरे भारत में ऐतिहासिक प्रभाव पड़ा। भारत के नौजवान में क्रांतिकारियों, मार्क्सवाद और लेनिनवाद के प्रति गहरी उत्सुकता पैदा हुई। वे वैज्ञानिक समाजवाद को जानने-समझने को उद्यत होने लगे। यह देखकर कांग्रेस के अंदर बड़ी हलचल मची। उन्हें लगने लगा कि यदि हिंदुस्तान का युवा समुदाय अनुशीलन समिति के मूर्धन्य क्रांतिकारी योगेश चंद्र चटर्जी, केशव प्रसाद शर्मा, राम प्रसाद बिस्मिल और सरदार भगत सिंह आदि के रास्ते पर चल पड़ा, तो उनके सुधारवादी और समझौतावादी कार्यक्रमों का क्या होगा। देश के युवाओं को क्रांतिकारी राजनीति की ओर जाने से रोकने और क्रांतिकारियों का प्रभाव कम करने की नीयत से 1934 में जय प्रकाश नारायण, मीनू मसानी और अशोक मेहता जैसे लोगों ने कांग्रेस में कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी का गठन किया।
शुरुआती दौर में इसने कांग्रेस के सुधारवादी पूंजीवादी नेतृत्व को हटाकर क्रांतिकारियों को नेतृत्व देने की मांग की। कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के कार्यक्रमों को लेकर जयप्रकाश नारायण से अनुशीलन समिति के योगेश चंद्र चटर्जी, केशव प्रसाद शर्मा ने लंबी बातचीत की। योगेश चंद्र चटर्जी और केशव प्रसाद शर्मा ने यह बातचीत अनुशीलन समिति के शीर्ष नेता महाराज त्रैलोक्य नाथ चक्रवर्ती, रमेश आचार्य, प्रतुल गांगुली आदि से सलाह मशविरा के बाद की थी। अनुशीलन समिति की योजना कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी का उपयोग एक मंच के रूप में करने की थी। लेकिन बाद की घटनाओं ने अनुशीलन समिति के मनसूबे पर पानी फेर दिया।
जयप्रकाश नारायण, मीनू मसानी और अशोक मेहता के नेतृत्व में गठित कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी मोहनदास करमचंद गांधी के प्रभाव में आ चुकी अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का दूसरा विंग साबित हुई। कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी का गठन ही इसलिए किया गया था, ताकि हिंदुस्तान के युवाओं को भ्रमित किया जा सके और भारत के क्रांतिकारियों का प्रभाव कम किया जा सके।

No comments:

Post a Comment