Tuesday, August 12, 2025

क्रांतिकारी शचींद्र नाथ सान्याल ने तैयार किया रिवोल्यूशनरी नाम से एचआरए का घोषणा पत्र

बस यों ही बैठे ठाले-19---रचनाकाल 26 जुलाई 2020

अशोक मिश्र
पिछली पोस्ट में बात महात्मा गांधी के अहिंसा के सिद्धांत और असहयोग आंदोलन की हो रही थी। सन 1920 तक आते-आते महात्मा गांधी का असहयोग आंदोलन जोर पकड़ने लगा था। पूरे देश में एक हलचल सी मच गई थी। चेतना की एक लहर पूरे देश में दौड़ने लगी थी। महात्मा गांधी पूरे देश की जनता को अहिंसा के नाम पर सुधारवादी और समझौतापरस्त विचारों को देश की जनता पर लादने का प्रयास कर रहे थे।
ब्रिटिश गुलामी की जंजीर को सशस्त्र क्रांति से तोड़ फेंकने को आमादा देश के क्रांतिकारियों के मार्ग का बाधक बनता जा रहा था गांधी का असहयोग आंदोलन। वे बेचैनी महसूस कर रहे थे। तभी सन 1922 में हुी एक घटना ने पूरे देश का राजनीतिक माहौल ही बदल कर रख दिया। सन 1922 में गोरखपुर के चौरी चौरा में पुलिस के हाथों कुछ ग्रामीण मारे गए। प्रतिरोधस्वरूप उत्तेजित ग्रामीणों ने चौरी चौरा पुलिस स्टेशन में आग लगा दी। बाइस पुलिस वाले इस आग में जिंदा जल गए। इस घटना को लेकर भाई सुभाष चंद्र कुशवाहा जी (Subhash Chandra Kushwaha) ने कई वर्षों की मेहनत और अध्ययन के बाद एक पुस्तक अभी चार-पांच साल पहले लिखी है-चौरी चौरा। इसमें उन्होंने चौरी चौरा कांड से पहले और बाद की स्थितियों की बहुत सटीक जानकारी दी है।
चौरी चौरा कांड के बाद महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन रोक दिया। पूरे देश में एक बार ऐसा लगा कि किसी बच्चे ने खेल-खेल में अपने साथियों को स्टेच्यू बोल दिया हो। पूरा देश थम सा गया। जो जहां था, वहां अवाक होकर रह गया। किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए? गांधी के असहयोग आंदोलन रोक देने के प्रतिक्रिया स्वरूप क्रांतिकारियों और कांग्रेस के ही कुछ नेताओं ने बड़ी तीखी आलोचना की। महात्मा गांधी ने यह फैसला कांग्रेस की कार्यकारिणी की सहमित के बिना लिया था।
कहा जाता है कि जब सन 1022 में बिहार के गया में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ, तो अनुशीलन समिति के राम प्रसाद बिस्मिल और उनके साथियों ने महात्मा गांधी का विरोध किया। कांग्रेस में भी इस बात को लेकर बहुत उथल पुथल मची। कांग्रेस में दो गुट हो गए। कांग्रेस में कुछ ऐसे नेता भी थे जो राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान रखते और क्रांतिकारियों के मार्ग को पसंद करते थे। वे क्रांतिकारियों की तरह खुले आम भले ही सक्रिय न रहते हों, लेकिन भीतर ही भीतर वे क्रांतिकारियों की हरसंभव मदद भी करते थे। ऐसे लोगों ने जो गांधी के एकाएक असहयोग आंदोलन को वापस ले लेने से खफा थे, उन्होंने स्वराज पार्टी का गठन किया था। स्वराज पार्टी के गठन में मोती लाल नेहरू और देशबंधु चितरंजन दास की बहुत बड़ी भूमिका थी। देशबंधु चितरंजन दास का संबंध विप्लवी संगठन अनुशीलन समिति से भी था।
गांधी के एकाएक असहयोग आंदोलन स्थगित कर देने से तिलमिलाए क्रांतिकारियों ने 3 अक्तूबर 1924 में कानपुर में लाला हर दयाल की सहमति से अनुशीलन समिति के शचींद्र नाथ सान्याल, राम प्रसाद बिस्मिल और अन्य क्रांतिकारियों ने हिंदुस्तान रिपब्लिकन आर्मी का गठन किया। एचआरए के गठन के बाद राम प्रसाद बिस्मिल शाहजहांपुर के डिस्ट्रिक आर्गनाइजर और आर्म्स डिवीजन के चीफ (प्रांतीय आर्गनाइजर आगरा और अवध) नियुक्त किए गए।
शचींद्र नाथ सान्याल और वरिष्ठ क्रांतिकारी योगेश चंद्र चटर्जी को राष्ट्रीय स्तर पर संगठन को खड़ा करने का जिम्मा सौंपा गया। कानपुर बैठक के बाद सान्याल और योगेश चंद्र चटर्जी संगठन के विस्तार के लिए बंगाल गए। क्रांतिकारी शचींद्र नाथ सान्याल ने रिवोल्यूशनरी नाम से एचआरए का घोषणा पत्र तैयार किया। इसके बाद सान्याल बंगाल के बांकुरा में गिरफ्तार कर लिए गए और कोलकाता के हावड़ा रेलवे स्टेशन पर योगेश चंद्र चटर्जी गिरफ्तार कर लिए गए।

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