अशोक मिश्र
चिंता को चिता के समान माना गया है। व्यक्ति चाहे जितना आत्मबल और सामर्थ्य रखने वाला हो, अगर उसे किसी प्रकार की चिंता ने जकड़ लिया, तो उसका क्षय निश्चित है। चिंता कई प्रकार की बीमारियों की जन्मदात्री भी मानी जाती है। चिंतित व्यक्ति धीरे-धीरे उसी प्रकार सूख जाता है जिस प्रकार कोई विशालकाय वृक्ष पानी न मिलने पर सूख जाता है। चिंता सचमुच बहुत घातक होती है।
इस संदर्भ में एक बड़ा रोचक किस्सा है। किसी जगह पर दो वैज्ञानिक आपस में बात कर रहे थे। उनमें से एक वैज्ञानिक वृद्ध था और दूसरा युवा। बुजुर्ग वैज्ञानिक ने युवा से कहा कि विज्ञान ने बहुत ज्यादा प्रगति कर ली है। इसमें किसी प्रकार का कोई संदेह नहीं है, लेकिन वह अभी तक किसी ऐसी मशीन का आविष्कार नहीं कर पाया है जिससे चिंता को समाप्त किया जा सके।
यह सुनकर युवा वैज्ञानिक हंस पड़ा। उसने कहा कि इस मामूली सी बात के लिए किसी मशीन के आविष्कार की क्या जरूरत है। चिंता से छुटकारा पाने के लिए मशीन बनाने में समय बरबाद करने से कोई फायदा नहीं होने वाला है। यह सुनकर बूढ़े वैज्ञानिक ने कहा कि आओ, मैं तुम्हें समझाता हूं। बुजुर्ग उस युवा को एक जंगल में ले गया।
उसने एक विशालकाय पीपल के पेड़ की ओर इशारा करते हुए कहा कि तुम जानते हो, यह पीपल का पेड़ चार सौ साल पुराना है। अब तक इस पेड़ पर कई बार बिजलियां गिर चुकी हैं। कई बार भीषण आंधी आने पर भी इस पेड़ का बाल बांका नहीं हुआ। यह हमेशा खड़ा रहा, लेकिन अब लगता है कि यह पेड़ जल्दी ही नष्ट हो जाएगा क्योंकि इसकी जड़ में दीमक लग गए हैं। चिंता भी दीमक की तरह होती है जो व्यक्ति को खोखला कर देती है। चिंता किसी व्यक्ति की सुख-समृद्धि तक को चट कर जाती है। यह सुनकर युवा वैज्ञानिक उस बूढ़े वैज्ञानिक की बात से सहमत हो गया।
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