अशोक मिश्र
जो लोग अपनी बुद्धि विवेक का उपयोग करते हैं, वह जीवन भर सफल ही रहते हैं। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जब लकीर के फकीर बने रहते हैं। कोई भी काम हो, वह एक रुटीन समझकर काम को निपटाते हैं और अपने में मस्त रहते हैं। वह यह भी नहीं सोचते हैं कि उनके काम का उद्देश्य क्या था? यह काम क्यों किया गया? यदि उन्हें कोई ऐसा काम दे दिया जाए जिसमें अपनी तर्कबुद्धि का उपयोग करना हो, तो ऐसे कामों में वह लोग विफल ही रहते हैं। इस संबंध में एक कथा कही जाती है।
किसी राज्य में एक राजा था। वह अपने दरबारियों की बुद्धि का परीक्षण करना चाहता था। वह जानना चाहता था कि उसके दरबारी किसी काम में अपनी बुद्धि विवेक का उपयोग करते हैं या नहीं। एक दिन उसने अपने दरबारियों को बुलाया और सबको अशर्फियों से भरी एक-एक थैली देते हुए कहा कि आपको मेरा चेहरा देखकर एक सप्ताह के भीतर इसे खर्च करना होगा।
इसके सात दिन के बाद लौटकर बताना होगा कि आपने क्या खरीदा? यह सुनकर कुछ दरबारी चकराए। उन्होंने मन ही मन राजा को बुरा भला कहा और चले गए। सात दिन बीत गए। राजा ने आठवें दिन सभी दरबारियों को बुलाया और पूछा कि आप लोगों ने क्या क्या खरीदारी की है? कोई कुछ नहीं बोला, तब एक दरबारी ने बड़ा साहस दिखाते हुए कहा कि महाराज! आपने कहा था कि मेरा चेहरा देखकर खर्च करना, तो खरीदते समय आपका चेहरा कैसे देखते? इसलिए हमने अशर्फी खर्च ही नहीं की।
तब एक मंत्री ने कहा कि महाराज! मैंने खरीदारी कर ली है। अशर्फी पर आपकी तस्वीर थी। तो उस तस्वीर को प्रणाम किया और जो खरीदना था, वह खरीद लिया। यह सुनकर राजाा ने मंत्री शाबाशी देते हुए कहा कि यही मैं देखना चाहता था कि लोग अपनी बुद्धि का उपयोग करते हैं या नहीं।
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