Saturday, August 2, 2025

क्रांतिकारी अवनि मुखर्जी की रूस में लेनिन से मुलाकात

अशोक मिश्र 

बैठे ठाले बस यों ही-------------9 रचनाकाल 5 जुलाई 2020

हां, तो कल बात हो रही थी मार्क्सवाद और लेनिनवाद की अन्योनाश्रिता पर। अगर आप इस बात को इस तरह से समझें तो शायद आसानी होगी। अगर मार्क्सवाद एक तलवार है, तो लेनिनवाद उस तलवार को उपयोग करने की कला है। तलवार तब तक बेकार है, जब तक उस तलवार को चलाने की कला में पारंगत तलवार बाज न हो। विल्यादिमीर इल्यीच लेनिन ने यही करके दिखाया। उन्होंने मार्क्सवादी दर्शन और सिद्धांत को आत्मसात करके पहले जनतांत्रिक क्रांति करवाई और उसके बाद नौ-दस महीने बाद समाजवादी क्रांति।
मार्क्सवाद और लेनिनवाद का कुल निचोड़ यही है कि जब तक शोषण पर आधारित बिकाऊमाल की पूंजीवादी अर्थव्यवस्था का सशस्त्र सर्वहारा समाजवादी क्रांति के जरिये ध्वंस और उन्मूलन नहीं होता, तब तक मानवीय मानव समाज की स्थापना नहीं हो सकती है। अब सशस्त्र सर्वहारा समाजवादी क्रांति को पढ़कर आप यह न समझें कि माओवादियों और नक्सलवादियों की तरह बम, कट्टा, पिस्तौल, आरडीएक्स या दूसरे घातक हथियार लेकर पूंजीवादी राजसत्ता के खिलाफ युद्ध छेड़ना है या पुलिस, फौज और सरकारी कर्मचारियों की हत्या करनी है।…नहीं…माओवादी, स्टालिनवादी, नक्सलवादी जैसे तमाम वादी और मार्क्सवादी-लेनिनवादी होने में यही फर्क है। दरअसल, यहां सशस्त्र का मतलब मार्क्सवादी-लेनिनवादी दर्शन और सिद्धांत को इस तरह आत्मसात और उसका उपयोग करना है कि वह दर्शन और सिद्धांत ही हथियार बन जाए। भौतिक हथियारों की जरूरत ही नहीं है। हां, जब क्रांति का दौर शुरू होगा, तब क्रांतिकारियों का लक्ष्य न्यूनतम रक्तपात होना चाहिए। बिना रक्तपात के कोई व्यवस्था परिवर्तन नहीं होता है।
आप याद करें। प्रख्यात क्रांतिकारी शहीद राम प्रसाद बिस्मिल ने अपने फांसी चढ़ने से कुछ दिन पूर्व तत्कालीन गुलाम भारत के नौजवानों को क्या संदेश दिया था। उन्होंने कहा था कि अब हिंदुस्तान के नौजवानों को ब्रिटिश राज सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए बम-पिस्तौल लेकर उनसे लड़ने की जरूरत नहीं है। बस, मार्क्सवाद और लेनिनवाद का गहन अध्ययन और उसको आत्मसात करके ब्रिटिश साम्राज्य से लोहा लेने की जरूरत है। आप याद करें, शहीदे आजम भगत सिंह के मार्क्सवादी-लेनिनवादी साहित्य का अध्ययन करने के बाद हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी के सदस्यों ने ब्रिटिश और हिंदुस्तानी नौकरशाहों पर व्यक्तिगत हमले बंद कर दिए थे।
संसद में भी भगत सिंह और उनके साथियों ने जब बम फेंका था, वह पहली बात घातक नहीं था और दूसरा उनका उद्देश्य किसी को क्षति पहुंचाना नहीं था। ब्रिटिश हुकूमत के बहरे कानों को खोलने के लिए संसद में धमाका किया गया था। आप याद करें कि रूस में सात नवंबर उन्नीस सौ सत्रह (रूसी कैलेंडर के मुताबिक 25 अक्टूबर) की समाजवादी क्रांति के बाद लेनिन ने यह कोशिश शुरू की कि पूरी दुनिया में समाजवादी क्रांतियां शुरू करवाई जाएं और इसके लिए उन्होंने गुलाम भारत में भी संपर्क किया।
भारत से क्रांतिकारी अवनि मुखर्जी रूस में जाकर लेनिन से मिले। कार्ययोजना बनी और तय हुआ कि भारत में जाकर क्रांतिकारियों और क्रांतिकारी तत्वों को संगठित कर क्रांतिकारी संगठन तैयार किया जाए। बाद में जब वह अपनी कार्ययोजना लेकर दोबारा रूस पहुंचे, तब तक लेनिन की गोली लगने के बाद कई महीने बीमार रहने से मौत हो चुकी थी। और घोर अवसरवादी स्टालिन रूस की सत्ता पर काबिज हो चुका था। उसके बाद भारत में कम्युनिष्ट पार्टियों का गठन हुआ, कम्युनिष्टों ने भारत के क्रांतिकारी आंदोलन के साथ किस तरह विश्वासघात किया…यह फिर कभी लिखूंगा। हां, चलते-चलते एक बात और बता दूं…कम्युनिष्टों के क्रांतिकारी आंदोलन से विश्वासघात करने वालों में क्रांतिकारी अवनि मुखर्जी की कोई भूमिका नहीं थी। वे आजीवन महान क्रांतिकारी रहे।

No comments:

Post a Comment