अशोक मिश्र
गौतम बुद्ध ने अपने उपदेश में प्राणि मात्र के कल्याण की बात की है। वह हर मायने में अहिंसा का पालन करने पर जोर देते थे। किसी का उपहास उड़ाना भी उनकी नजर में हिंसा थी। वह कहा करते थे कि किसी को दुख पहुंचाना, सबसे बुरा कर्म है। वह मन को पवित्र रखने की सीख देते हुए कहते थे कि यदि मनुष्य अपने मन को पवित्र रखना सीख जाए, तो दुनिया भर में हिंसक घटनाएं होनी बंद हो जाएंगी।
मन की चंचलता ही कई बार हिंसा के लिए प्रेरित करती है। महात्मा बुद्ध वर्षाकाल को छोड़कर बाकी समय भ्रमण ही किया करते थे। एक बार की बात है। वह किसी गांव से गुजर रहे थे। उनके साथ उस समय कुछ शिष्य भी थे। गांव वालों ने जब उनकी वेशभूषा को देखा तो वह उनका उपहास उड़ाने लगे। गांव वालों को भला बुरा कहते और उपहास उड़ाते देखकर तथागत वहीं शांत चित्त से खड़े हो गए।
गांववालों ने काफी देर तक उनको भला बुरा कहा और उपहास उड़ाया। लोग जब थक गए, तो गौतम बुद्ध ने उन गांववालों से कहा कि अभी कुछ और करना है या नहीं। अगर कुछ और नहीं करना है, तो मैं अगले गांव जाऊं? गांव वाले काफी हैरान हुए कि हमने इस आदमी का इतना अपमान किया और यह शांत खड़ा हुआ है। एक व्यक्ति ने कहा कि आपका हम लोगों ने इतना उपहास उड़ाया, अब आप क्या करेंगे? महात्मा बुद्ध ने कहा कि वही करूंगा जो पिछले गांव वालों के साथ किया था।
पिछले गांववाले मेरे लिए खूब खाने पीने की वस्तुएं लाए थे। खूब स्वागत सत्कार किया था, लेकिन मैंने उनसे कहा कि मेरा पेट भरा हुआ है। मैंने सब वापस कर दिया। अब आप लोगों ने मेरे साथ जो किया, वह सब मैं आपको वापस करता हूं। यह सुनकर गांववाले बहुत शर्मिंदा हुए और माफी मांगी।
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