अशोक मिश्र
न्यूयार्कमें 1875 को स्थापित थियोसाफिकल सोसाइटी की स्थापना में रूसी मूल की अमेरिकी नागरिक हेलेना पेत्रोव्ना ब्लावत्स्की की अहम भूमिका रही है। थियोसाफिकल सोसाइटी का संबंध आर्य समाज से भी रहा है। ब्लावत्स्की कई साल तक भारत के कई शहरों में रहीं और उन्होंने भारत में सामाजिक सुधार के प्रयास भी किए। ब्लावत्स्की का जन्म 12 अगस्त 1831 को यूक्रेन के एक शहर में हुआ था।
इनके पिता जर्मन के राजघराने से संबंध रखते थे। ब्लावत्स्की के दादा आंद्रेई रूस के ही एक शहर के गवर्नर थे। ब्लावत्स्की ने जीवन भर भ्रमण करके अपने विचारों का प्रचार प्रसार किया। वह भारत, तिब्बत, श्रीलंका सहित दुनिया के कई देशों में गईं। कहा जाता है कि उनके विचारों में कुछ हद तक स्पष्टता नहीं थी। उनके जीवन के वृत्तांत कई जगह एक दूसरे से साम्यता नहीं रखते हैं।
इसके बावजूद यह सच है कि ब्लावत्स्की ने अपना सारा जीवन मानव सेवा और आध्यात्मिक विचारों के प्रसार में लगा दिया था। एक बार की बात है। वह ट्रेन से यात्रा कर रही थीं। उनके पास एक मोटा सा थैला था। वह थोड़ी-थोड़ी देर बाद थैले में से मुट्ठी भर कुछ निकालती थीं और उसे खिड़की से बाहर फेंक देती थीं। साथ में यात्रा कर रहे लोगों को उनकी यह हरकत अटपटी लग रही थी। काफी समय तक उनके यही करने से एक यात्री ने पूछ ही लिया। तब ब्लावत्स्की ने कहा कि वह फूलों के बीज बाहर फेंक रही थीं।
उस व्यक्ति ने पूछा कि इससे क्या होगा? उन्होंने कहा कि समय आने पर फूलों के यह बीच अंकुरित होंगे। तो इन फूलों को देखकर लोग खुश होंगे। उस व्यक्ति ने कहा कि क्या तुम इन्हें देखने आओगी। उन्होंने कहा कि शायद नहीं। लेकिन जिन फूलों को देखकर मुझे खुशी हुई, उन्हें भी मैंने नहीं लगाया था।
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