अशोक मिश्र
सती प्रथा पर करारी चोट करके उसे गैरकानूनी घोषित करवाने वाले का नाम राजा राम मोहन राय था। वह पश्चिम बंगाल के हुबली जिले में 22 मई 1772 में पैदा हुए थे। वह ब्रह्म समाज के संस्थापक और समाज में पुनर्जागरण के अग्रदूत थे। उन्होंने न केवल सती प्रथा का विरोध किया, बल्कि विधवा विवाह के लिए भी आवाज उठाई। यही वजह है कि कुछ लोग उन्हें अंग्रेजों का समर्थक तक कहते थे।
सती प्रथा के विरोध का कारण उनके जीवन में घटी एक घटना थी। उनके माता-पिता की मृत्यु बचपन में ही हो गई थी। उनका पालन-पोषण उनकी भाभी और बड़े भाई ने किया था। उनकी भाभी उनका बड़ा खयाल रखती थीं। राजा राम मोहन राय के खाने-पीने, नहाने-धोने से लेकर कापी किताब, सबका खयाल उनकी भाभी रखती थी। लोगों को उनके आपसी व्यवहार को देखकर लगता ही नहीं था कि वह देवर-भाभी हैं। लोग उन्हें मा-बेटे मानते थे।
आखिर, एक दिन उनकी भाभी को अपने कलेजे पर पत्थर रखकर पढ़ने के लिए अपने से दूर भेजना पड़ा पड़ा। कई साल तक बाहर रहकर मोहन राय ने पढ़ाई की। दुर्भाग्य से एक दिन उनके बड़े भाई की मृत्यु हो गई। गांव के लोगों ने भाई की मृत्यु पर राय की भाभी को भी ढोल-नगाड़े बजाकर सती कराने के लिए जबरदस्ती ले गए। वह विरोध करती रहीं, लेकिन लोग नहीं माने।
वह अपने देवर से एक बार मिलना चाहती थीं। दूसरे दिन लोगों ने देखा कि उनकी भाभी अधजली अवस्था में एक झाड़ी में छिपी हुई हैं। तो उन्हें पकड़कर दोबारा चिता पर बिठा दिया गया। जब मोहन राय को इस घटना का पता चला, तो उन्होंने ठान लिया कि अब और किसी महिला को सती नहीं होने देंगे। वह अपनी भाभी को तो नहीं बचा सके, लेकिन इस प्रथा को समाप्त कराकर लाखों महिलाओं को जलने से बचा लिया।
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