Sunday, June 15, 2025

मध्य पूर्व में परमाणु हथियारों की रेस का खतरा

 अशोक मिश्र

मध्य पूर्व में तनाव बढ़ रहा है। गुरुवार की रात इजरायल ने ईरान पर जबरदस्त हमला किया। ज्यादातर हमले ईरानी परमाणु स्थल को निशाने बनाकर किए गए। इजरायली हमले में 78 ईरानी नागरिक मारे गए और 320 लोगों के घायल होने की खबर है। हालांकि शुक्रवार की रात ईरान ने इजरायल पर जवाबी हमला किया है। ईरान ने तेल अवीव में इजरायली सैन्य मुख्यालय पर सटीक हमला किया है। ईरान और इजरायल के बीच चल रहे युद्ध के बीच अमेरिका की क्या भूमिका है? सबसे बड़ा सवाल यही है। वैसे तो पिछले दो दिनों के हमले में किस देश को वास्तविक रूप से क्या नुकसान हुआ, इसकी सही जानकारी तो बाहर आने से रही, लेकिन यह सही है कि इन दिनों ईरान काफी हद तक कमजोर पड़ चुका है।

अमेरिका और इजरायल का मकसद सिर्फ इतना है कि वह किसी भी तरह परमाणु हथियार बनाने में सक्षम न हो सके। इजरायल ने इसीलिए गुरुवार की रात को ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमला करके उन्हें नष्ट करने का प्रयास किया ताकि वह आज यानी रविवार को अमेरिका के साथ परमाणु हथियार मामले को होने वाली बैठक में भाग लेने को मजबूर हो जाए या फिर उसका परमाणु हथियार बनाने का प्रोग्राम टल जाए या फिर इतना लेट हो जाए कि इजरायल को दूसरी कार्रवाई करने का मौका मिल जाए।

इजरायली हमले के बाद ही डोनाल्ड ट्रंप ने कहा है कि वह परमाणु कार्यक्रम पर जल्दी से जल्दी समझौता करे। इस बीच इजरायल ने देश पर बमबारी जारी रखने की कसम खाई है। वहीं ईरान ने परमाणु समझौता के बारे में होने वाली बैठक में भाग लेने से इनकार कर दिया है। अमेरिका और इजरायल जब भी ईरान पर न्यूक्लियर वीपेन्स बनाने का आरोप लगाते रहे हैं, ईरान हमेशा कहता रहा है कि उसका कार्यक्रम एक सिविल न्यूक्लियर प्रोग्राम है। 

इसके लिए रूस से मदद मिली है और ये पूरी तरह से शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए है। लेकिन अमेरिका और इजरायल इस बात को मानने को तैयार नहीं हैं। अमेरिका ने तो इराक के तानाशाह सद्दाम हुसैन की बात पर भी विश्वास नहीं किया था। जब सद्दाम चीख-चीख कर दुनिया भर से कह रहे थे कि उनके पास परमाणु हथियार बनाने का उनका कोई प्रोग्राम नहीं है। लेकिन अमेरिका नहीं माना और इराक को नेस्तनाबूत करके ही माना। इराक के तानाशाह सद्दाम हुसैन को बंदी बनाने के बाद 30 दिसंबर 2006 को सन 1982 में दुजैल शहर में अपने 148 विरोधियों की हत्या के जुर्म में फांसी पर लटका दिया था।

वैसे सद्दाम हुसैन कोई दूध के धुले नहीं थे, उन्होंने अपने तीस साल के शासनकाल में ईराकी जनता पर काफी अत्याचार किए थे। लेकिन यहां बात अमेरिका की कूटनीति की है। सद्दाम हुसैन की मृत्यु के बाद इराक में कोई परमाणु हथियार नहीं पाया गया। हो सकता है कि ईरानी शासक सच कह रहे हों कि उनका कार्यक्रम एक सिविल न्यूक्लियर प्रोग्राम है। अब जब अमेरिका के इशारे पर इजरायल ने ईरान पर हमला कर दिया है, तो उसके पास दो ही विकल्प हैं। ईरान साउथ कोरिया के नक्शे कदम पर चलकर तमाम प्रतिबंधों के बावजूद परमाणु हथियार बना ले। या फिर सत्ता पलट का इंतजार करे। 

बताया जा रहा है कि अमेरिका और इजरायल आदि देश इस प्रयास में हैं कि ईरान के धार्मिक नेता अयातुल्लाह अली खामेनेई को अपदस्थ करके वहां अपने किसी समर्थक की सरकार बनाई जाए। यदि ऐसा नहीं हुआ, तो इस बात की संभावना प्रबल रूप से दिखाई दे रही है कि ईरान के वर्तमान धार्मिक नेता खामेनेई और उनके सिपहसालार मध्य पूर्व के लिए एक बहुत बड़ी मुसीबत बन सकते हैं। साल-दो साल के भीतर मध्य पूर्व में इजरायल और अमेरिकी समर्थक देशों को बहुत बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है। मध्य पूर्व में परमाणु हथियारों की एक रेस शुरू हो सकती है।

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