Monday, June 9, 2025

शिष्य में आ गया अहंकार

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

अहंकार से व्यक्ति का विकास रुक जाता है। अगर वह कुछ सीख रहा है, तो वह उस कला को पूरी तरह नहीं सीख पाता है। उसे लगता है कि उसने सब कुछ जान लिया है। अब उसे कुछ नया सीखने की जरूरत नहीं है। इस अहंकार की वजह से उसका बहुत नुकसान होता है। गुरु की बातें भी अहंकारी व्यक्ति को बहुत बुरी लगती हैं। ऐसी ही एक कथा है। 

बहुत पुराने समय की बात है। एक आश्रम में गुरु और उनका शिष्य रहते थे। दोनों खिलौने बनाते थे और उससे ही उनका गुजारा चलता था। शिष्य दोनों के बनाए खिलौने लेकर बाजार जाता था। बाजार में उसके बनाए खिलौने अच्छे दाम पर बिकते थे। जबकि उसके गुरु के बनाए खिलौने बहुत मुश्किल से बिकते थे और दाम भी कम मिलते थे। इसके बावजूद जब भी कोई बात चलती, तो गुरु जी अपने शिष्य से यही कहते थे कि बेटा! थोड़ी और मेहनत करो। अभी बहुत सुधार की जरूरत है। तुम्हारे काम में अभी तक पर्याप्त कुशलता नहीं आई है। 

कुछ दिन तक तो शिष्य अपने गुरु जी की बात को सुनता रहा, लेकिन धीरे-धीरे उसे गुरुजी की बात बुरी लगने लगी। वह मन ही मन सोचता था कि गुरुजी के खिलौने कम दाम में बिकते हैं, इसलिए गुरु की मुझसे ईष्या करते हैं। तभी तो मुझे अक्सर सलाह दिया करते हैं। मैं इनसे अच्छे खिलौने बनाता हूं। एक दिन गुरुजी के सलाह देने पर शिष्य को गुस्सा आ गया। 

उसने अहंकार भरे स्वर में कहा कि मैं आपसे अच्छा खिलौना बनाता हूं, फिर भी आप मुझे सलाह देते हैं। गुरुजी समझ गए कि इसे अहंकार हो गया है। वह बोले, जब मैं युवा था, तो तुम्हारी तरह गुरुजी की बात का बुरा मानता था। मेरे गुरुजी ने मुझे सलाह देनी बंद कर दी। मैं पूरी तरह सीख नहीं पाया। यह सुनकर शिष्य को अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने गुरुजी से क्षमा मांगी।

1 comment:

  1. वाह! बहुत सुन्दर बोधकथा..

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