Wednesday, June 11, 2025

जो दिल खोजा आपना,मुझसे बुरा न कोय

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

सैकड़ों साल पहले कबीरदास ने बहुत साफ शब्दों में कहा था कि जब मैंने लोगों में बुराई खोजने की कोशिश की, तो मुझे कोई बुरा नहीं मिला। लेकिन जब मैंने अपने आप में बुराई तलाशी तो संसार में मुझसे बुरा कोई नहीं मिला। कितनी सच्ची बात कही है कबीरदास जी ने। ऐसे ही एक प्राचीन कथा है। 

एक गुरुकुल में जब एक शिष्य की शिक्षा पूरी हो गई, तो गुरु जी ने चलते समय अपने शिष्य को एक अनोखा दर्पण दिया। वैसे वह शिष्य काफी योग्य और होनहार था। गुरुजी को उस शिष्य के प्रति अगाध स्नेह भी था। इसी वजह से गुरुजी ने उसे अनोखा दर्पण भी दिया था। जब गुरुजी ने दर्पण की खासियत बताई, तो उसने दर्पण लेते समय उसका मुंह गुरुजी की ओर कर दिया। 

उसने देखा कि अरे! गुरुजी में तो सारी बुराइयां हैं। लोभ, मोह, लालच, घृणा सब कुछ तो विद्यमान है गुरुजी में। यह देखकर शिष्य दुखी हो गया। वह गुरुजी में इतनी बुराइयों की कल्पना भी नहीं कर सकता था। वह दर्पण लेकर चला गया। उसे घर से लेकर बाहर तक जो भी मिला, वह बुराइयों का पुतला ही मिला। इससे वह काफी दुखी हो गया। वह सोचने लगा कि दुनिया में तो सिर्फबुराई ही बुराई है। क्या संसार में कोई भी अच्छा आदमी नहीं है जिसके मन में किसी किस्म की बुराई न हो। 

काफी सोचने-विचारने के बाद वह लौटकर गुरुकुल आया और गुरुजी से कहा कि गुरुदेव! इस दर्पण में मैंने जिसको भी देखा, वह सभी तो बुरे ही निकले। आपमें भी तो काफी बुराई है। अपने शिष्य की बात सुनकर गुरुजी ने कहा कि अरे! यह दर्पण मैंने तुम्हें इसलिए नहीं दिया था कि तुम दूसरों की बुराई देखो। मैंने तो यह इसलिए दिया था ताकि तुम इसमें अपना चेहरा देखकर अपने को सुधारने का प्रयत्न कर सको। यदि तुम दूसरों को देखने के बजाय अपने को देखा होता, तो अब तक अपने में काफी सुधार कर लिया होता। यह सुनकर शिष्य चुप रह गया।

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