अशोक मिश्र
दिल्ली के पास से शुरू होकर दक्षिणी हरियाणा और राजस्थान से होते हुए गुजरात के अहमदाबाद में समाप्त होने वाली 692 किमी लंबी अरावली पर्वत शृंखला दुनिया की सबसे पुरानी पर्वत शृंखलाओं में से एक है। अरावली पर्वत शृंखला पृथ्वी के इतिहास की चार भूगर्भिक युगों में से तीसरी प्रोटेरोजोइक काल की मानी जाती है। प्रोटेरोजोइक युग आज से 2500 से 538.8 लाख साल पहले का माना गया है। अभी हाल में ग्रीनवॉल प्रोजेक्ट के तहत पुरातत्व विरासत अनुसंधान और प्रशिक्षण अकादमी ने सर्वे करके कुछ ऐसे सबूत इकट्ठे किए हैं जिससे यह साबित होता है कि लाखों साल पहले अरावली क्षेत्र में मानव जीवन था।
अरावली क्षेत्र के 420 एकड़ क्षेत्र में किए गए सर्वे के दौरान दमदमा क्षेत्र में कुल्हाड़ी और खुरचने वाले औजार मिले हैं। यह सब पुरापाषाणकाल की कलाकृतियां बताई जाती हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि कुल्हाड़ी और खुरचने वाला औजार छह से आठ लाख साल पुराना है। लाखों साल पहले अरावली क्षेत्र में मानव सभ्यता का विकास हो रहा था। यह भी माना जाता है कि दिल्ली से लेकर गुजरात तक फैले अरावली क्षेत्र में भील जनजाति निवास करती रही है। भील जनजाति की सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा अरावली क्षेत्र है।पुरातत्व विभाग को अरावली क्षेत्र में मानव सभ्यता के विकास के प्रमाण मिले हैं, जो पाषाण युग से लेकर तांबे और लौह युग तक फैले हुए हैं। अरावली क्षेत्र में पहले भी मानव जीवन के प्रमाण मिलते रहे हैं। आनंदपुर गांव में भी कुछ साल पहले मानव सभ्यता के प्रमाण मिले थे। अब मांगर और कोट गांव में भी ऐसे प्रमाण मिले हैं जिससे यह साबित होता है कि लाखों साल पहले मानव सभ्यता यहां निवास करती थी। राजस्थान के जयपुर से लेकर अहमदाबाद तक जगह-जगह पर मानव सभ्यता के प्रमाण मिल चुके हैं।
अरावली क्षेत्र में पत्थरों पर उकेरी गई कुछ कलाकृतियां भी मिली हैं जिससे अनुमान लगाया जाता है कि इस क्षेत्र में आदिमानवों का समूह रहता रहा होगा। एक चट्टान पर तो मानव समूह के निशान भी पाए गए हैं। अरावली क्षेत्र को गणेश्वर सुनारी सांस्कृतिक समूह का हिस्सा माना जाता है जो ईसा से तीसरी शताब्दी पूर्व निवास करने वाली तांबा उत्पादक सभ्यता थी। इतना ही नहीं, पुरातत्व विज्ञानियों को लौह सभ्यता के भी प्रमाण समय समय पर मिलते रहे हैं।
विभिन्न काल में अरावली क्षेत्र में निवास करने वाली सभ्यताओं के बारे में विस्तृत अध्ययन की आवश्यकता है। भारत की प्राकृतिक हरित दीवार कही जाने वाली अरावली पर्वत शृंखला को अब बचाने की बहुत जरूरत है। पहले से ही खनन माफियाओं ने इसको काफी नुकसान पहुंचाया है।
No comments:
Post a Comment