अशोक मिश्र
कोटा शिवराम कारंत कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार थे। उन्होंने कन्नड़ भाषा में कई उपन्यास और नाटक लिखे जिसे कन्नड़ साहित्य की अमूल्य निधि माना जाता है। उन्हें साहित्य में ज्ञानपीठ पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। कारंत का जन्म 10 अक्टूबर 1902 में कर्नाटक के उडूपी जिले में हुआ था। उन्होंने बाइस साल की उम्र से ही लिखना शुरू कर दिया। वह अपनी मातृभाषा कन्नड़ से बहुत प्रेम करते थे।
वह प्रकृतिवादी भी थे। युवावस्था में ही कांग्रेस में शामिल हो जाने के कारण वह अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर सके। बात उन दिनों की है, जब वह हाईस्कूल में पढ़ते थे। अंग्रेजों द्वारा स्थापित स्कूल के प्रिंसिपल ने एक नियम बना रखा था कि जो भी अंग्रेजी के अलावा दूसरी भाषा में बातचीत करता था, तो वह नाराज होते थे।
वह चाहते थे कि सभी बच्चों का अंग्रेजी पर बेहतरीन पकड़ हो। जिसे भी वह कन्नड़ में बातचीत करते देखते थे, प्रिंसिपल सजा देते थे। यह बात कारंत को बहुत नागवार लगती थी। एक दिन की बात है। प्रिंसिपल कहीं गए हुए थे। कक्षा में कारंत ने कोई मजाकिया बात कही जिसे सुनते ही सारे छात्र हंस पड़े।
कारंत ने हंसने वाले लड़कों को डांटते हुए कहा कि मूर्खों, तुम कन्नड़ में कैसे हंस सकते हो? तुम हाईस्कूल के विद्यार्थी हो, तुम्हें अंग्रेजी में हंसना चाहिए। संयोग से उसी समय प्रिंसिपल काम से लौट आए थे और कक्षा के बाहर खड़े होकर वह कारंत की बात सुन रहे थे। कारंत की बात सुनकर वह समझ गए कि वह क्या कहना चाहता है। इसके बाद उन्होंने अपनी यह आदत छोड़ दी।
उन्होंने अपने सैंतालीस उपन्यासों के अलावा इकतीस नाटक, चार लघु कहानी संग्रह, निबंध और रेखाचित्रों की छह पुस्तकें , कला पर तेरह पुस्तकें, कविताओं के दो खंड, नौ विश्वकोश और विभिन्न मुद्दों पर सौ से अधिक लेख लिखे।
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