Sunday, June 15, 2025

सहनशीलता से बनी रहती है एकता

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

जापान में यामातो नाम किसी एक सम्राट का नहीं था। तीसरी से लेकर सातवीं शताब्दी तक जापान में यामातो राजाओं का शासन रहा। इस शासनकाल में जापान की खूब उन्नति हुई थी। कहा जाता है कि यामातो शासनकाल में ही तीसरी शताब्दी में बौद्ध धर्म जापान पहुंचा था। इन्हीं के शासनकाल में महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं का इतना प्रचार हुआ कि बौद्ध धर्म वहां का राष्ट्रीय धर्म बन गया। 

यामातो काल में ही जापान में कंजिरा और निहोन शोकी जैसे ऐतिहासिक ग्रंथों की रचना हुई, जिसमें जापान के इतिहास और पौराणिक कथाओं का वर्णन है। कहते हैं कि किसी एक यामातो सम्राट का एक राज्य मंत्री था ओ-चो-सान जो बूढ़ा होने की वजह से सेवानिवृत्त हो गया था। एक दिन सम्राट को पता चला कि उसका एक हजार व्यक्तियों का परिवार है और सभी लोग एक साथ बड़े सुख-शांति के साथ रहते हैं। 

यह सुनकर उसे बड़ा आश्चर्य हुआ। सम्राट ने सोचा कि  सान का परिवार कैसे एकजुट होकर रहता है, इसका पता किया जाए। एक दिन वह अपने बुजुर्ग राज्य मंत्री से मिलने उसके घर जा पहुंचा। राज्यमंत्री सान ने अपने सम्राट का खूब स्वागत किया। स्वागत सत्कार के बाद जब बातचीत शुरू हुई तो सम्राट ने चान से पूछा कि महाशय! मैं आपके परिवार की एकता के बारे में बहुत सुना है। मैं आपके परिवार की एकता का रहस्य जानना चाहता हूं। 

राज्यमंत्री चान कुछ बोल नहीं पाते थे, इसलिए उन्होंने कलम दवात मंगाई और कागज के एक टुकड़े पर लिखा-सहनशीलता, सहनशीलता और सहनशीलता। यह पढ़कर सम्राट यामातो सब कुछ समझ गए। उन्होंने अपने पूर्व राज्यमंत्री विदा मांगी और कहा कि यदि परिवार के सभी लोग सहनशील हो जाएं, तो परिवार नहीं बिखरेगा।

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