बोधिवृक्ष
अशोक मिश्र
आधुनिक भारत का सपना देखने वाले राजा राम मोहन राय का जन्म 22 मई 1772 में बंगाल के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। बंगाली समाज में पुनर्जागरण का सबसे ज्यादा श्रेय राजा राम मोहन राय को दिया जाता है। वह रंगभेद के खिलाफ थे और जीवन भर रंगभेद के खिलाफ संघर्ष करते रहे। कहते हैं कि पंद्रह साल की उम्र में ही इन्होंने बंगाली, फारसी, संस्कृत और अरबी का अच्छा खासा ज्ञान हासिल कर लिया था।
विधवा विवाह के लिए काफी संघर्ष किया था। वह बाल विवाह, सती प्रथा, जाति-पाति, छुआछूत, कर्मकांड और पर्दा प्रथा के घोर विरोधी थे। राजा राम मोहन राय ने पांच साल तक ईस्ट इंडिया कंपनी में नौकरी भी की और उसके बाद नौकरी छोड़कर ब्रह्म समाज की स्थापना की। कहा जाता है कि उनका एक अनुयायी था नंद किशोर बोस। बोस को विवाह के लिए गोरी लड़की को दिखाया गया, लेकिन उसकी शादी एक सांवली लड़की से करा दी गई।
इससे वह अपने ससुर से काफी नाराज था और अपने ससुर को सबक सिखाना चाहता था। उसने यह बाद राजा राम मोहन राय को बताई तो मोहन राय ने बोस से पूछा कि तुम्हारी पत्नी के सांवली होने के अलावा उसमें कोई और दोष है क्या। बोस ने कहा कि नहीं, वह सुशील है। घर के कामों में काफी निपुण है। वह परिवार का पूरा ख्याल भी रखती है। घर में किसी को उससे कोई शिकायत भी नहीं है।
तब मोहन राय ने कहा कि प्रकृति ने इंसान को दो ही रंग दिए हैं। गोरा या काला। अब अपने ससुर द्वारा किए गए कुकृत्य के लिए अपनी निर्दोष पत्नी को सजा देना चाहते हो। क्या यह उचित है? यह सुनकर नंद किशोर बोस को अपनी गलती समझ में आ गई। इसके बाद उसने अपनी पत्नी को त्यागने का विचार छोड़ दिया।
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