Wednesday, April 9, 2025

स्वामी विवेकानंद की पढ़ने की ललक

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

भारत में स्वामी विवेकानंद की जयंती को युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। स्वामी विवेकानंद की मात्र 39 साल की उम्र में ही मौत हो गई थी। उनका जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में हुआ था। स्वामी जी के बचपन का नाम नरेंद्रनाथ था। जब उन्होंने बंगाल के प्रसिद्ध संत स्वामी रामकृष्ण परमहंस से संन्यास की दीक्षा ली, तो उनका नाम स्वामी विवेकानंद रखा गया। 

उन्हें पढ़ने का बहुत शौक था। कहा जाता है कि 25 साल की उम्र में ही विवेकानंद ने वेद पुराण, बाइबल, कुरआन, धम्मपद, दास कैपिटल, गुरु ग्रंथ साहिब सहित राजनीति शास्त्र, अर्थशास्त्र, संगीत, साहित्य और दर्शन की किताबों का बहुत ही गहराई से अध्ययन कर लिया था। एक बार वह भ्रमण पर निकले हुए थे। गुरुभाई स्वामी ब्रह्मानंद और स्वामी तुयार्नंद में से कोई एक उनके साथ  था। 

वह उनकी पढ़ने के प्रति आसक्ति को जानते थे। उन्होंने एक जगह अच्छी लाइब्रेरी देखी, तो वहीं कुछ दिन रुकने का फैसला किया। उनका गुरु भाई लाइब्रेरी जाता और किसी न किसी विषय की दो पुस्तकें ले आता। मौका मिलने पर विवेकानंद पढ़ते और उसे लौटा देते। जब कई दिन ऐसा ही हुआ, तो लाइब्रेरियन ने कहा कि तुम यदि इन पुस्तकों को देखने के लिए ले जाते हो, तो मैं आपको यहीं दिखा देता हूं। 

इनको ढोकर ले जाने की क्या जरूरत है। गुरुभाई ने कहा कि इन पुस्तकों को मेरे गुरुभाई स्वामी विवेकानंद पढ़ते हैं। एक दिन लाइब्रेरियन स्वामी विवेकानंद से मिला तो स्वामी जी ने कहा कि मैं वास्तव में इन पुस्तकों को गंभीरता से पढ़ता हूं। मैं जो पढ़ता हूं, वह मुझे याद हो जाता है। उन्होंने पुस्तकों के कुछ अंश भी सुनाए। यह सुनकर लाइब्रेरियन चकित रह गया। विवेकानंद ने कहा कि यदि एकाग्रचित्त होकर पढ़ा जाए तो याद रह जाना कोई बड़ी बात नहीं है।


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