बोधिवृक्ष
अशोक मिश्र
ज्ञान हमें विनम्र होना सिखाता है, लोगों का कल्याण करना सिखाता है। वह हमें प्रेरित करता है कि अपनी भलाई सोचते हुए भी दूसरे लोगों का भला कैसे किया जा सकता है। उस ज्ञान का कोई मूल्य नहीं है जिससे समाज को कोई फायदा न हो। किसी राज्य में एक गुरुकुल था।
उस गुरुकुल में सैकड़ों बच्चे शिक्षा हासिल कर रहे थे। कई राज्यों से गरीब और धनवान परिवारों के बच्चे समान रूप से शिक्षा ग्रहण कर रहे थे। गुरुकुल में कुछ राज्यों के राजकुमार तक वहां पढ़ रहे थे। जब किसी शिष्य की पढ़ाई पूरी हो जाती थी तो गुरु जी कई तरह की परीक्षाएं लिया करते थे। एक बार तीन शिष्यों की एक साथ शिक्षा पूरी हो गई। गुरु जी ने कई तरह की परीक्षाएं लीं और उन तीनों शिष्यों को बुलाकर कहा कि अभी तुम लोग अपनी कुटिया में जाओ। कल सुबह आना, तुम लोगों की अंतिम परीक्षा होगी।
यह सुनकर तीनों शिष्य अपनी-अपनी कुटिया में चले गए। आधी रात को गुरु जी ने तीनों कुटिया से लेकर अपनी कुटिया तक ढेर सारे कांटे बिखेर दिए। सुबह हुई। तीनों शिष्य अपनी-अपनी कुटिया से बाहर निकले। एक शिष्य तो कांटों की परवाह किए बिना चलता हुआ गुरु जी की कुटिया के पास पहुंचा और बैठकर कांटे निकालने लगा। दूसरे शिष्य ने पहले वाले को कांटों पर चलते देखा, तो वह सतर्क हो गया। वह कांटों से बचकर चलने लगा और गुरु जी की कुटिया के बाहर बैठ गया।
वहीं तीसरे शिष्य ने कांटों को देखा, तो उसने पास के पेड़ की कुछ टहनियां तोड़ी और उन्हें झाड़ू की तरह बांधकर रास्ते से सारे कांटे इकट्ठा किया और उसे कूड़ा फेंकने वाली जगह पर डाल आया। गुरु जी की कुटिया तक आकर उसने गुरु जी को प्रणाम किया और एक किनारे बैठ गये। गुरु जी ने उससे कहा कि शाबाश बेटा! तुम जीवन भर ऐसे ही बने रहना।
चित्र-साभार गूगल
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