Sunday, April 27, 2025

आतंकी संगठनों की सबसे पहले रुकवानी होगी फंडिंग

अशोक मिश्र

पहलगाम हमले के बाद देश के जो हालात हैं, वह अपनी सरकार से कुछ ऐसा करने की मांग कर रहे हैं जिससे आतंकवाद की कमर टूट जाए। भारत सरकार ने जो पांच बड़े फैसले लिए हैं, उससे पाकिस्तान पर तत्काल बहुत ज्यादा प्रभाव पड़ता दिखाई नहीं दे रहा है। जहां तक सिंधु और उसकी दो सहायक नदियों झेलम और चिनाब के पानी को रोक देने का सवाल है, उसे रोकने के लिए फिलहाल काफी समय और पैसा चाहिए। इन तीनों नदियों के कुछ प्रतिशत पानी को रोक देने से बात बनने वाली नहीं है। वाघा-अटारी बार्डर बंद करने से भी पाकिस्तान बहुत ज्यादा फर्क पड़ने की संभावना नहीं दिखाई दे रही है। जो देश अपनी खराब हालत के बावजूद आतंकियों को ट्रेनिंग देने, उन्हें भारत के खिलाफ आतंकी कार्रवाई करने के लिए उकसाता हो, उसके लिए वाघा बार्डर बंद हो या खुला, क्या मायने रखता है।

पहलगाम की घटना से प्रत्येक देशवासी दुखी और गुस्से में है। पाकिस्तान से युद्ध छेड़ना, काफी खर्चीला होगा। युद्ध से हमारे देश की अर्थव्यवस्था पर कोई सकारात्मक प्रभाव तो पड़ेगा नहीं। जब दो देशों में युद्ध होता है, तो दोनों ओर के सैनिकों की मौत होती है। अभी तो हम अपने देश के 26 नागरिकों की मौत को सहन नहीं कर पा रहे हैं, ऐसी स्थिति में सैनिकों की शहादत कैसे बर्दाश्त की जा सकेगी। इसके लिए जरूरी है कि भारत पाकिस्तान और पाकिस्तान समर्थित आतंकी संगठनों पर ऐसा करारा प्रहार करे जिससे उसकी कमर ही टूट जाए। इसके लिए जरूरी है कि पाकिस्तान के आतंकी संगठनों तक पहुंचने वाली फंडिंग की नदी को सुखा दिया जाए। 

आतंकी संगठनों को विभिन्न देशों से जकात के नाम पर मिलने वाली फंडिंग ही रोकने की कोशिश की जाए। सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान अल सऊद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मित्रता जगजाहिर है। सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मुस्लिम संगठनों को भारी मात्रा में अनुदान (जकात) देने के लिए प्रसिद्ध हैं। पाकिस्तान के कुछ संगठनों को भी उनसे जकात मिलती है।

यदि पीएम मोदी सऊदी अरब सहित मुस्लिम देशों से पाकिस्तान और पाकिस्तान समर्थित आतंकी संगठनों की करतूत का खुलासा करते हुए अपील करें कि वह ऐसे संगठनों को अनुदान देना बंद करें क्योंकि उनके द्वारा दिए गए अनुदान का उपयोग मानवता के खिलाफ किया जा रहा है। भारत सहित कुछ और देशों में निर्दोष जनता की हत्या करने में उनसे मिले पैसे का उपयोग किया जा रहा है। तो बात बन सकती है। पीएम मोदी का रसूख मुस्लिम देशों पर भी उतना ही है जितना प्रभाव अमेरिका, रूस, यूक्रेन आदि देशों पर है। 

संयुक्त अरब अमीरात के क्राउन प्रिंस शेख खालिद बिन मोहम्मद बिन जाएद अल नाहयान हों या बहरीन, कुवैत, ओमान, कतर से लेकर सऊदी अरब तक के राष्ट्राध्यक्ष सबसे पीएम मोदी के मधुर संबंध हैं। यदि पीएम मोदी की अपील पर मुस्लिम देशों के राष्ट्राध्यक्ष थोड़ा सा भी तवज्जो दे दें, तो निश्चित रूप से पाकिस्तानी आतंकवादी संगठनों और उनके आकाओं की कमर टूट जाएगी। बस, इसके लिए इन देशों से व्यक्तिगत या सामूहिक रूप से आह्वान करना होगा। थोड़ी देर के लिए मान लिया जाए कि मुस्लिम देश पीएम मोदी की बात पर ध्यान नहीं देते हैं, तो कम से कम यह मलाल तो नहीं रहेगा कि हमने प्रयास ही नहीं किया।

फंडिंग के साथ-साथ पाकिस्तानी आतंकवादियों तक हथियारों की पहुंच को रोकना होगा। पाकिस्तानी आतंकी संगठनों के पास चीन निर्मित हथियार पाए जाते हैं या फिर अमेरिका निर्मित। इन दिनों चीन टैरिफ वॉर में उलझा हुआ है। उसे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ वार से बचने के लिए भारत की बहुत जरूरत है। वह टैरिफ वॉर शुरू होने के बाद भारत की ओर कई बार दोस्ती का हाथ बढ़ा चुका है। 

यदि चीन इस बारे में बात की जाए, तो इस बात की ज्यादा संभावना है कि वह पाकिस्तान को हथियार बेचना बंद कर दे। हालांकि पाकिस्तान से उसकी मित्रता काफी गहरी है। ठीक यही प्रक्रिया अमेरिका के साथ अपनाई जा सकती है। एक बार बात करने में कोई बुराई नहीं है। यत्ने कृते यदि न सिद्धयति, को अत्र दोष:।

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