Tuesday, April 22, 2025

बुद्ध बोले, प्रकृति ने तुम्हें अमूल्य निधियां दी हैं

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

गौतम बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के बाद किसी गुफा या कंदरा में बैठकर तपस्या नहीं की। उन्होंने राजपाट, उस समय की सबसे सुंदर मानी जाने वाली राजकुमारी यशोधरा जैसी पत्नी और अपने पुत्र राहुल का परित्याग किसी गुफा में बैठकर आत्मोत्थान के लिए तो किया नहीं था। यही वजह है कि वह अपनी मृत्यु तक सामान्य लोगों के बीच ही अपना जीवन गुजारते रहे। वह किसी शासक या राजपुरुष के महलों में रात बिताने कभी नहीं गए। 

यदि किसी ने सम्मानपूर्वक बुलाया तो गए, लेकिन काम खत्म होने के बाद फिर वह सामान्य लोगों के बीच ही आ गए। अपने राज्य की जनता को दुखी जानकर मानव मात्र के दुखों का हल खोजने निकले थे गौतम बुद्ध। जब उन्होंने दुखों का कारण जाना, तो वह हर आदमी को समाधान बताने के लिए गांव-गांव, शहर-शहर फेरा लगाया। 

एक बार एक गांव में महात्मा बुद्ध  लोगों को उपदेश दे रहे थे। उसी गांव में एक निर्धन भी रहता था। वह रोज देखता था कि परेशान, बदहाल लोग तथागत का उपदेश सुनने जाते हैं और जब वह लौटते हैं, तो प्रसन्न चित्त होते हैं। वह सोचने लगा कि आखिर महात्मा बुद्ध ऐसा क्या कर देते हैं कि लोग प्रसन्न हो जाते हैं। उसने सोचा कि उसे भी अपनी निर्धनता दूर करनी चाहिए। 

एक दिन पहुंच गया महात्मा बुद्ध के पास और अपनी समस्या बताई। बुद्ध ने कहा कि तुम्हारे निर्धन होने का कारण तुम्हारा अज्ञान है। प्रकृति ने तुम्हें होठों पर स्मिता दी है। ताकि तुम दुनिया भर को अपनी मीठी मुस्कान से लोगों को प्रसन्नचित्त कर सको। प्रकृति ने दो हाथ दिए हैं ताकि तुम लोगों की सेवा कर सको। तुम निर्धन कहां हो? तुम्हारे पर तो प्रकृति की दी हुई अमूल्य निधियां हैं। यह सुनकर वह आदमी समझ गया कि बुद्ध उसे क्या समझाना चाह रहे हैं।

चित्र साभार गूगल

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