अशोक मिश्र
गोपाल कृष्ण गोखले का जन्म 9 मई 1866 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी में मराठी परिवार में हुआ था। गोखले कांग्रेस के नरमदल के नेता थे। वह कांग्रेस के वरिष्ठ नेता होने के साथ-साथ सर्वेंट आॅफ इंडिया सोसायटी के संस्थापक भी थे। वह जीवन भर किसी भी तरह के भेदभाव के खिलाफ रहे। इनके युवावस्था की एक बहुत प्रसिद्ध कथा है। कहते हैं कि पुणे में एक कार्यक्रम आयोजित किया गया था।
उस कार्यक्रम में महादेव गोविंद रानाडे को भी भाग लेना था। महादेव गोविंद रानाडे उस समय बाम्बे उच्च न्यायालय के न्यायाधीश थे। उस कार्यक्रम में न्यायाधीश महादेव गोविंद रानाडे को सम्मिलित होना था। कार्यक्रम के आयोजकों ने गोखले को पंडाल के गेट पर खड़ा करते हुए कहा कि जिसके पास निमंत्रण पत्र हो उसी को पंडाल के अंदर आने देना। गोखले अपने काम में जुट गए। जो निमंत्रण पत्र दिखाता था, उसको वह उसको अंदर जाने देते थे।
संयोग से उसी दौरान कार्यक्रम के मुख्य अतिथि महादेव गोविंद रानाडे वहां पहुंचे। उनके पास निमंत्रण पत्र नहीं था। गोखले ने उनको अंदर जाने से रोक दिया। रानाडे वहीं खड़े हो गए। थोड़ी देर बाद स्वागत समिति का अध्यक्ष वहां पहुंचा और उसने रानाडे को वहां खड़ा देखा, तो गोखले से पूछा कि आपने इन्हें अंदर क्यों नहीं जाने दिया? गोखले ने कहा कि इनके पास निमंत्रण पत्र नहीं था, तो इनको अंदर नहीं जाने दिया जा सकता है। तब अध्यक्ष ने कहा कि यही तो कार्यक्रम के मुख्य अतिथि हैं। तुम्हें इन्हें अंदर आने देना चाहिए था।
गोखले ने कहा कि मैं तो अपने कर्तव्य का पालन कर रहा था। इसके कुछ समय बाद गोखले न्यायाधीश रानाडे की विद्वता से प्रभावित होकर उनके काफी करीब होते चले गए और गोखले ने उन्हें अपना गुरु मान लिया।
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