व्यंग्य----------------------
अशोक मिश्र
अभी मैं सोकर भी नहीं उठा था कि मुसद्दी लाल ने दरवाजे पर दस्तक दी। किचन से ही घरैतिन ने आवाज लगाई, ‘देखिए, दरवाजे पर कौन है?’ मैंने लेटे-लेटे जवाब दिया, ‘मैं संजय नहीं हूं कि यही से लेटे-लेटे देख लूं कि दरवाजे पर कौन है?’ मेरा जवाब सुनकर घरैतिन तमतमा गईं। बोली-‘सुनिए, यह द्वापर युग नहीं है और न ही कुरुक्षेत्र में महाभारत का युद्ध चल रहा है। हमारे देश के राजा भी धृतराष्ट्र नहीं हैं, अच्छे भले प्रधानमंत्री हैं। बतकूचन करने की जगह उठकर जाइए और दरवाजे पर देखिए कौन है, जो दरवाजा ही उखाड़ने पर उतारू है।’
पत्नी रौद्र रूप अख्तियार करती उससे पहले मैं भुनभुनाता हुआ उठा और जाकर दरवाजा खोला। किसी सड़े-गले, मुड़े तुड़े नोट की तरह अस्त व्यस्त कपड़ों में मुसद्दी लाल खड़े थे। कई सालों से रंगाई पुताई न होने वाले पुराने मकान की तरह शरीर लिए मुसद्दी लाल कुछ बदहवास से थे। मैंने उन्हें अंदर आने का इशारा किया। वह अंदर आकर सोफे पर इस तरह गिरे मानो लोडर से रुई की गांठ सोफे पर गिरी हो। सोफा भी कराह उठा। मैंने उनके सामने बैठते हुए चिल्लाकर कहा, ‘घरैतिन...मुसद्दी लाल भाई आए हैं। कुछ चाय-शाय पिलवाओ।’ घरैतिन ने एक प्लेट में कुछ बिस्कुट और एक गिलास पानी लाकर रख दिया। मैंने मुसद्दी लाल से पूछा-‘और बताइए, आपका ज्योतिष केंद्र कैसा चल रहा है? आंख के अंधे और गांठ के पूरे कुछ बेवकूफ आपके जाल में फंसते हैं कि नहीं?’ मेरी बात सुनकर मुसद्दी लाल का चेहरा लाल हो गया। वह मुझे घूरते हुए बोले, ‘मेरा मजाक उड़ाओ, तो मैं बर्दाश्त करलूंगा, लेकिन मेरी ज्योतिष विद्या का मजाक मैं सहन नहीं करूंगा।’
मैं कुछ कहता, इससे पहले मुसद्दी लाल ने गिलास उठाकर एक ही सांस में पानी पिया और टेबल पर गिलास पटकते हुए कहा,‘मैंने परसों ही उससे कहा था कि यह कलिकाल की चरम अवस्था है। इस अवस्था में पतियों की कुंडली में राहु सातवें घर में बैठकर तीसरे घर के शुक्र को पीड़ित कर रहा है। वहीं आठवें घर में बैठा केतु पांचवें घर के चंद्रमा पर कुदृष्टि डाल रहा है। पति नाम के जातकों का कलिकाल की उच्च अवस्था में राहु-केतु के चलते मृत्युयोग चल रहा है। प्रेमिका के चक्कर-शक्कर में मत पड़। लेकिन नहीं माना। कहा था कि मेरे जैसे ज्योतिषी टके के भाव मिलते हैं। और देख लो, अपने ही घर में वह मूर्ति बना बैठा है।’
मुसद्दी लाल की बात सुनकर मुझे ऐसा लगा कि शायद उनका दिमाग फिर गया है। मैंने मुसद्दी लाल को घूरते हुए कहा-‘क्या लंतरानी हांक रहे हैं? हुआ क्या यह तो बताइए।’ मुसद्दी लाल ने गहरी सांस छोड़ते हुए कहा-‘परसों मेरे पास एक ग्राहक आया था। उसकी कुंडली देखकर मैंने कहा था कि तू जिस औरत के प्यार में पड़ा है, वह तेरे लिए ठीक नहीं है। तेरी कुंडली के राहु-केतु बड़े उपद्रवी हैं, तुझसे तेरी प्रेमिका के पति की हत्या करवा सकते हैं। मंगल, शुक्र और चंद्रमा भी तेरी कुंडली में कंता की जगह हंता योग बना रहे हैं। सावधान रह, नहीं तो परिणाम बुरा होगा।’
इतना कहकर मुसद्दी लाल सांस लेने के लिए रुके। फिर बोले, ‘परसों रात में उसने अपनी प्रेमिका के साथ मिलकर उसके पति को जलाकर मार डाला। दोपहर में अपने घर आया, तो उसकी पत्नी ने अपने प्रेमी के साथ मिलकर पहले गला दबाया। फिर पति की लाश को प्लास्टर आॅफ पेरिस में डुबो दिया। उसकी पत्नी के कलाकार प्रेमी ने उसे बैठी हुई अवस्था में प्लास्टर आफ पेरिस की मूर्ति में बदल दियाा। पत्नी का इरादा मूर्ति बनाकर नदी में विसर्जित कर देने का था, लेकिन मूर्ति बने आदमी की पकड़ी गई प्रेमिका ने सारा राज उगल दिया, तो उसकी खोज हुई। पुलिस ने जब छापा मारा, तो मूर्ति बना शव लुढ़का और प्लास्टर आफ पेरिस टूटने से हाथ बाहर आ गया। तब यह हत्यारे भी पकड़े गए। आज अखबारों में दोनों हत्याओं की खबर छपी है।’
मुसद्दी लाल की बात सुनकर घरैतिन किचन से निकली। मैंने उन्हें देखते हुए कान पकड़े और इशारे से छबीली से न मिलने का वायदा किया। मेरा इशारा समझकर मुस्कुराती हुई घरैतिन ने चाय लाकर रख दी। हम दोनों चाय पीने लगे।
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