बोधिवृक्ष
अशोक मिश्र
गुरु शरण रानी माथुर को भारत की पहली महिला सरोद वादक होने का गौरव प्राप्त है। सरोद रानी के नाम से विख्यात गुरु शरण रानी का जन्म 9 अप्रैल 1929 में दिल्ली के जाने-माने व्यवसायी के घर में हुआ था। इस जमाने में संभ्रांत परिवार की लड़कियां नृत्य, वाद्य यंत्र और संगीत सीखकर मंचों पर प्रदर्शन नहीं किया करती थीं। इसको अच्छा नहीं माना जाता था।
रूढ़ीवादी परिवार में जन्म लेने के बाद भी शरण रानी ने हार नहीं मानी और मैहर सेनिया घराने के प्रसिद्ध सरोदवादक अलाउद्दीन खान और उनके बेटे अली अकबर खान से सरोद वादन सीखा। उन्होंने एमए करने के बाद अच्छन महाराज से जहां कथक सीखा, वहीं नाभा कुमार सिन्हा से मणिपुरी शास्त्रीय नृत्य में महारथ हासिल की। सन 1960 में उन्होंने दिगंबर जैन व्यवसायी परिवार से संबंध रखने वाले सुल्तान सिंह बैकलीवाल से विवाह किया। बाबा अलाउद्दीन से सरोद सीखने के बाद उन्होंने मंचों पर प्रस्तुति देना शुरू किया।
इसके बाद लगातार सरोद वादक शरण रानी की ख्याति दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ती गई। उन्होंने देश-विदेश में अपने कार्यक्रम प्रस्तुत किए। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने जब उनका सरोदवादन सुना, तो वह बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने शरण रानी को भारत का सांस्कृतिक राजदूत कहकर संबोधित किया। प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता पृथ्वीराज कपूर ने उनका सरोदवादन सुनकर कहा था कि शरण रानी के वादन को सुनकर ऐसा लगा मानो मां सरस्वती ने उन्हें अपनी गोद में ले लिया है।
पद्म भूषण से सम्मानित शरण रानी ने अपनी कला को सिखाने के लिए अपने घर पर स्कूल खोला और अपने शिष्यों से कभी फीस नहीं ली। कुछ शिष्य तो उनके घर में रहकर खाते-पीते थे और सरोद वादन सीखते थे। उन्होंने वाद्य यंत्रों के बारे में कई पुस्तकें और अखबारों में लेख भी लिखे हैं। कुछ वर्षों तक कैंसर से जूझने के बाद 8 अप्रैल 2008 को अपने 79वें जन्मदिन से एक दिन पहले उनकी मृत्यु हो गई।
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