बोधिवृक्ष
अशोक मिश्र
महात्मा गांधी के अनन्य सहयोगी डॉ. जाकिर हुसैन हमेशा विनम्रता को ही आचरण का आधार मानते थे। उनका जन्म 8 फरवरी 1897 को हैदराबाद के एक अफरीदी पश्तून परिवार में हुआ था। उनकी प्रारंभिक पढ़ाई लिखाई उत्तर प्रदेश में हुई थी। बाद में वह उच्च शिक्षा के लिए बर्लिन गए थे और वहां से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की उपाधि हासिल की।
डॉ. जाकिर हुसैन जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। बाद में वह इसी विश्वविद्यालय में कुलपति भी बनाए गए। वह भारत के उपराष्ट्रपति और राष्ट्रपति भी रहे। उनकी विनम्रता के बारे में एक किस्सा बहुत मशहूर है। उनके घर में एक नौकर था। काफी दिनों से वह जाकिर हुसैन के घर में काम करता आ रहा था, इसलिए वह थोड़ा आलसी भी हो गया था।
वह सुबह देर तक सोता रहता था। घर के लोग सुबह जल्दी उठने को कहते थे, तो वह टालमटोल कर देता था। एक परिवार वालों ने इसकी शिकायत जाकिर हुसैन से की तो उन्होंने कहा कि उसे समझाओ। वह समझ जाएगा। लोगों ने उस नौकर को विभिन्न तरीके से समझाया, लेकिन उसकी समझ में नहीं आया। कुछ दिनों बाद लोगों ने उस नौकर की एक बार फिर शिकायत की और कहा कि अब आप ही उसे समझाएं।
जाकिर हुसैन सहमत हो गए। अगले दिन सुबह पांच बजे एक गिलास में पानी लेकर उस नौकर के पास पहुंचे और उसे जगाते हुए बोले, उठिए जनाब, जागिए। मुंह हाथ धो लीजिए, तब तक मैं चाय बना लाता हूं। यह कहकर जाकिर हुसैन अंदर चले गए। थोड़ी देर बाद एक कप में चाय लेकर लौटे और नौकर से कहा, आप चाय पी लीजिए। यह सुनकर वह नौकर घबरा गया। अगले दिन वह नौकर सबसे पहले उठकर सारा काम किया। उसमें आए बदलाव से सब लोग चकित रह गए।
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