अशोक मिश्र
मृत्यु क्या है? यह सवाल तब से मौजूद है, जब से मानव में चेतना का विकास हुआ है। सदियों से इस सवाल का जवाब खोजा जा रहा है, लेकिन यह सवाल सच कहें तो आज भी अनुत्तरित है। कुछ लोग कहते हैं कि शरीर को सक्रिय रखने वाली आत्मा जब नया शरीर धारण करती है, तो शरीर की मृत्यु हो जाती है, लेकिन आत्मा की नहीं। फिर सवाल उठता है कि यह आत्मा क्या है? शरीर, आत्मा और परमात्मा इन्हीं तीन बातों पर भाववादी दर्शन टिका हुआ है। कुछ लोग मृत्यु को नए जीवन की शुरुआत मानते हैं। खैर...। यह तो प्रकृति का यह सर्वकालिक नियम है कि कोई भी दृश्य वस्तु जिसका निर्माण हुआ है, उसका विनाश निश्चित है। शरीर भी प्रकृति में मौजूद तत्वों से निर्मित हुआ है, तो इसका विनाश यानी मृत्यु तय है। कुछ लोग मानते हैं कि जिन तत्वों को मिलाकर यह शरीर बनता है, उन तत्वों की प्रकृति में रूपांतरण हो जाना ही मृत्यु है। मनुष्य यह जानते हुए कि मृत्यु निश्चित है, उसके बावजूद मृत्यु से दूर भागने की कोशिश करता है। वह हर संभव प्रयास करता है कि उसकी मौत न ही हो, वह कभी बूढ़ा न हो, लेकिन प्रकृति के नियमों को बदलने का सामर्थ्य अभी मनुष्य अपने भीतर नहीं पैदा कर पाया है। हां, इसका प्रयास वह जरूर कर रहा है।
मनुष्य अभी इस कोशिश में लगा हुआ है कि वह मृत्यु की ओर जाते जीवन को कुछ वर्षों के लिए ठिठका दिया जाए। एंटी एजिंग यानी उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को धीमा कर देने का प्रयास शुरू हो चुका है। जिनके पास अथाह पैसा है, धन-संपत्ति है, ऐशोआराम के समस्त संसाधन मौजूद हैं, वह क्यों चाहेंगे कि इतने सारे सुखों को त्यागकर इस दुनिया से जाना पड़े। ऐसी स्थिति में एंटी एजिंग से जुड़ी योजनाओं-परियोजनाओं में दुनिया भर के धनकुबेरों ने पूंजी निवेश करना शुरू कर दिया है। क्या पता, आगे चलकर कोई ऐसी खोज हो जाए जिससे मृत्यु पर विजय पाई जा सके? सन 2023 में एंटी एजिंग से जुड़े स्टार्टअप्स में दुनिया भर के अमीरों ने 41 हजार करोड़ रुपये का पूंजी निवेश किया था। अमेजन के संस्थापक जेफ बेजोस, ओपेनएआई के सीईओ सैम आल्टमैन, ओरेकल के सह संस्थापक लैरी एलिसन, अमेरिकी अरबपति ब्रायन जॉनसन जैसे तमाम लोग रिवर्स एजिंग के क्षेत्र में पूंजी निवेश कर रहे हैं। मौत का भय उन्हें अपने आप को सदैव जवां रहने के लिए मजबूर कर रहा है। वैसे दुनिया का हर आदमी मौत से भयभीत है, यह कहना थोड़ा गलत होगा।
जैन धर्म में एक परंपरा है संथारा। इसका उल्लेख सल्लेखना के तौर पर भी किया जाता है। वैसे तो मैं जैन धर्म के बारे में बहुत ज्यादा नहीं जानता हूं, लेकिन जितना पढ़ा है, उसके मुताबिक इस परंपरा को मानने वाले जब अपने जीवन के अंतिम काल में पहुंचते हैं तो वे संथारा अपना लेते हैं। संथारा अपनाने वाला व्यक्ति खाना-पीना छोड़ देता है। यदि उसके कोई घातक रोग हुआ है तो वह दवाएं भी लेना छोड़ देता है और चुपचाप मौत का इंतजार करता है। सोचकर देखिए, कितना कठिन होता है चुपचाप मौत का इंतजार करना। पल प्रतिपल मौत की ओर बढ़ना, कितने साहस का काम है। मौत को निकट आते देखकर भी न कोई अफसोस, न घबराहट, न भय, एकदम अपने परिवेश से पूर्णत: अलग होकर अपने आपको समेट लेना कितनी कठिन प्रक्रिया होती होगी संथारा। कहा जाता है कि जैन धर्म में कोई ईश्वर नहीं है। जैन शुद्ध, स्थायी, व्यक्तिगत और सर्वज्ञ आत्मा में विश्वास करते हैं। लगभग ढाई हजार साल पुराने इस धर्म को मानने वाले भारत में अनुमानत: पचास लाख लोग हैं। एक आंकड़ा बताता है कि हर साल लगभग दो से चार सौ लोग संथारा अपनाते हैं। इस दौरान परिवार के लोग भी बड़ा संयम रखते हैं। इनके इस संयम की सराहना की जानी चाहिए कि यह जानते हुए कि उनके अजीज मौत के आगोश में जा रहे हैं, इसके बावजूद वह शांत रहते हैं।
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