बोधिवृक्ष
अशोक मिश्र
भारतीय गणराज्य के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भी थे। उनका जन्म 3 दिसम्बर 1884 को बिहार के तत्कालीन सारण जिले (अब सीवान) के जीरादेई नामक गाँव में हुआ था। कांग्रेस के अग्रगण्य नेताओं में से एक राजेंद्र प्रसाद वकालत की पढ़ाई की और वकील बनने के साथ ही साथ वह कांग्रेस से जुड़े गए। देश के आजाद होने पर उन्हें संविधान निर्मात्री समिति का अध्यक्ष बनाया गया।
इसके बाद वह आजाद भारत के पहले राष्ट्रपति चुने गए। उन्होंने 12 वर्ष तक राष्ट्रपति पद को सुशोभित किया। एक घटना उस समय की है, जब वह राष्ट्रपति थे। एक दिन उनकी बेटी राष्ट्रपति भवन में उनसे मिलने आई। बेटी के साथ उसका बेटा यानी डॉ. राजेंद्र प्रसाद का नाती भी था।
कुछ घंटे रहने के बाद जब मां-बेटे जाने लगे, तो राजेंद्र प्रसाद ने अपने नाती को एक रुपया दिया। तब उनकी पत्नी राजवंशी देवी ने राजेंद्र प्रसाद से कहा कि आप राष्ट्रपति होते हुए भी अपने नाती को विदाई में सिर्फएक रुपया दे रहे हैं। यह सुनकर राजेंद्र बाबू गंभीर हो गए।
उन्होंने कहा कि मेरे लिए देश का हर बच्चा मेरा नाती-पोता है। सब मेरे बच्चे हैं। अब अगर मैं अपने उन बच्चों को एक-एक रुपया देना चाहूं, तो क्या ऐसा कर पाना संभव है। मैं अपनी तनख्वाह से तो देश के सभी बच्चों को एक-एक रुपया नहीं दे सकता। यह सुनकर उनकी पत्नी राजवंशी देवी चुप रह गईं।
वह समझ गईं कि उनके पति के विचार कितने ऊंचे हैं। राजेंद्र बाबू कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राष्ट्रपति रहते हुए अपने और अपने रिश्तेदारों के लिए कुछ नहीं सोचा। जब वह राष्ट्रपति पद से सेवानिवृत्त हुए, तो वह सदाकत आश्रम में रहने चले गए। 28 फरवरी 1963 में भारत रत्न राजेंद्र बाबू का सदाकत आश्रम में निधन हो गया।
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