बोधिवृक्ष
अशोक मिश्र
बगदाद में एक बादशाह अपनी प्रजा के बारे में जानकारी लेने के लिए वेष बदलकर घूमता रहता था। वैसे दुनिया के कई देशों में राजाओं ने ऐसा किया है। भारत में भी कई राजा हुए हैं जो अपनी प्रजा के कष्टों और अपने बारे में उनके विचार आदि जानने के लिए वेष बदलकर उनके बीच रहा करते थे। इससे राजकीय कर्मचारियों के बारे में भी पता चलता था कि वह प्रजा के साथ कैसा व्यवहार करते हैं।
यदि कोई कर्मचारी गलत करता हुआ पाया जाता था, तो उसे दंडित किया जाता था। तो बात बगदाद के बादशाह की हो रही थी। वह अक्सर वेष बदलकर घूमता रहता था। अपने महल से कुछ दूरी पर वह देखता था कि एक बुजुर्ग जगह-जगह पर पौधे रोप रहे हैं। पौधे भी ऐसे जिनको वयस्क आयु प्राप्त करने में सौ-पचास साल लगते हों। वह मौसमी फूलों के पौधे कहीं नहीं रोप रहे थे।
बादशाह बुजुर्ग को अक्सर अपने काम में लगा हुआ पाता। कई बार तो वह अपने काम से थककर बैठ जाता और थोड़ा सुस्ताने के बाद फिर अपने काम में लग जाता। बादशाह से एक दिन रहा नहीं गया। वह उस बुजुर्ग के पास पहुंचा और उससे दुआ सलाम करने के बाद पूछ लिया कि महाशय! आप इन पौधों को क्यों रोप रहे हैं। आपकी अच्छी खासी उम्र हो चुकी है। यह पौधे जब तक बड़े होंगे, तब तक शायद आप इस दुनिया में नहीं होंगे। तो फिर आप इतनी मेहनत क्यों कर रहे हैं।
बादशाह की बात सुनकर बुजुर्ग मुस्कुराया और बोला, यदि हमारे पूर्वजों ने भी ऐसा ही सोचा होता, तो हम अपने आसपास के इन पुराने पेड़ों को नहीं देख पाते। तरह-तरह के इन पेड़ों की छाया और उनके फल से हम वंचित रह जाते। ठीक है, आज रोपे गए पेड़ों से मिलने वाले लाभ से मैं वंचित रहूंगा, लेकिन आने वाली पीढ़ियां तो लाभ उठाएंगी।
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