Friday, April 25, 2025

पहलगाम हमला: मानवता के खिलाफ युद्ध की घोषणा

अशोक मिश्र

पहलगाम में मंगलवार को जो कुछ भी हुआ, दरअसल वह एक तरह से मानवता के खिलाफ युद्ध की घोषणा थी। यह धर्म के नाम पर कायर लोगों के समूह द्वारा कुछ निर्दोष लोगों पर किया गया कायराना हमला था। यह कोई पहली बार नहीं हुआ है। कई दशकों से होता चला आ रहा है। इस हमले में इंसानियत की हत्या हुई है, भाईचारा घायल हुआ है। इसकी जितनी निंदा की जाए, वह कम ही है। 22 अप्रैल को कश्मीर के पहलगाम में जिस तरह आतंकियों ने खून की होली खेली और यह समझ लिया कि वह अपने मकसद में कामयाब हो गए, तो यह उनकी बहुत बड़ी भूल है।
किसी की निर्दोष की हत्या करने से कोई भी पवित्र उद्देश्य पूरा नहीं हो सकता है। किसी बड़े और पवित्र उद्देश्य के लिए साधन की पवित्रता भी मायने रखती है। अगर लश्कर-ए-तोयबा का सहयोगी संगठन द रेजिस्टेंस फ्रंट अपने आपको इस्लामिक कायदे-कानून को मानने वाला कहतf है, तो यह सरासर झूठ है। इस्लाम या दुनिया का कोई भी धर्म किसी निर्दोष का खून बहाने की इजाजत नहीं देता। जिसका ईमान ही मुसल्लम नहीं, वह कैसा मुसलमान? पहलगाम में निर्दोषों की बेरहमी से हत्या करने वाले दरिंदे थे, हत्यारे थे, जुनूनी थे, लेकिन मुसलमान नहीं थे।
मुसलमान तो वह घोड़े वाला सैयद हुसैन शाह था जिसने अपनी जान तो दे दी, लेकिन कई लोगों की जान बचा गया। उसने हाथ जोड़ते हुए हमलावरों से कहा भी था कि इन्हें छोड़ दो। यह निर्दोष लोग हैं, भले ही इनका धर्म कोई भी हो। लेकिन हमलावर नहीं माने, तो उसने वही किया जो एक मुसलमान को करना चाहिए, ऐसी ही भिन्न परिस्थितियों में एक हिंदू को करना चाहिए, एक सिख, एक जैन, एक बौद्ध या एक ईसाई को करना चाहिए।
सैयद हुसैन शाह हमलावरों से भिड़ गया। उनकी रायफल छीनने की कोशिश में गोली चल गई और वह घायल हो गया। बाद में उसकी अस्पताल में मौत हो गई। यदि उसने यह हिम्मत न दिखाई होती, तो शायद मरने वालों की संख्या ज्यादा होती। सैयद हुसैन शाह की हिम्मत ने आतंकियों के हौसले को पस्त कर दिया। सच्चे हिंदू और मुसलमान तो वह लोग थे जो घायलों की मदद कर रहे थे, जरूरत पड़ने पर अपना खून दे रहे थे। घोड़े और खच्चर वाले वहां की हालत देखकर रो रहे थे और अपनी जान पर खेलकर यात्रियों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचा रहे थे।
सच कहा जाए, तो द रेजिस्टेंस फ्रंट के दरिदों ने हिंदुओं पर हमला नहीं किया है, उन्होंने जम्मू-कश्मीर में पिछले कुछ सालों से फल-फूल रही पर्यटन इंडस्ट्री पर हमला किया है। धारा-370 लागू होने के बाद जम्मू-कश्मीर में चारों ओर फैलती जा रही शांति और खुशहाली पर हमला किया है। पर्यटकों पर हमला करके उन्होंने जम्मू-कश्मीर की धीरे-धीरे मजबूत होते भाईचारे और अर्थव्यवस्था पर हमला किया है। इस हमले के बाद जम्मू-कश्मीर में गए पर्यटक जल्दी से जल्दी अपने घर लौट जाना चाहते हैं।
हमलावरों ने उस विश्वास पर हमला किया है जिसने भारत और दूसरे देशों के पर्यटकों को श्रीनगर, पहलगाम जैसे पर्यटन स्थलों पर आने के लिए आकर्षित किया था। पर्यटकों के आने से जम्मू-कश्मीर के स्थानीय लोगों के चेहरे पर रौनक आने लगी थी। पर्यटन बढ़ने से कारोबार बढ़ने की उम्मीद पैदा होने लगी थी। लेकिन अफसोस, अब आगामी चार-पांच साल तक शायद ही देशी और विदेशी पर्यटक जम्मू-कश्मीर की ओर रुख करें। हमले के बाद जिस तरह पर्यटकों में भगदड़ मची हुई है, उससे यह बात साफ हो जाती है। इस एक हमले ने केंद्र और राज्य सरकार की चार-पांच साल की मेहनत पर पानी फेर दिया है। जो मानवीय क्षति हुई है, उसकी भरपाई तो संभव ही नहीं है, लेकिन जो आर्थिक नुकसान जम्मू-कश्मीर को आगे होने वाला है, उसकी भी भरपाई शायद ही संभव हो।

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