बोधिवृक्ष
अशोक मिश्र‘गरीबों को मिले रोटी तो मेरी जान सस्ती है’ कहने वाले क्रांतिकारी चंद्र शेखर
आजाद का जन्म 23 जुलाई 1906 को मध्य प्रदेश के अलीराजपुर में हुआ था। वह भगत सिंह और राम प्रसाद बिस्मिल आदि क्रांतिकारियों के अनन्य साथी थे। हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी के वह कमांडर रहे। उन्होंने कसम खाई थी कि वह आजाद ही रहेंगे, कभी अंग्रेजों के हाथों गिरफ्तार नहीं होंगे।
15 साल की उम्र में 15 बेंत की सजा के बारे में तो लगभग सभी जानते ही हैं। उन्होंने क्रांतिकारी आंदोलन को एक नई दिशा दी थी। चंद्र शेखर आजाद का निशाना बड़ा पक्का था। कहा जाता है कि भाबरा में वह बचपन में ही आदिवासी लड़कों से तीर चलाना सीख लिया था। जब क्रांतिकारी जीवन में आए, तो उन्होंने झांसी के निकट अपना कार्य क्षेत्र बनाया। झांसी के जंगलों में उन्होंने बंदूक चलाने की प्रैक्टिस की और कई क्रांतिकारियों को निशाना लगाना सिखाया।
डीलडौल से लंबे तगड़े आजाद अंग्रेजों की आंख में धूल झोंकने के लिए कभी मोटे पेट वाला लाला बन जाया करते थे, तो कभी त्रिपुण्डधारी पंडित जी। उन्होंने कुछ समय तक झांसी में हरिशंकर ब्रह्मचारी के नाम से स्कूल में पढ़ाया भी था। एक बार वह फरारी के दिनों में पंडित का वेश धरे कहीं जा रहे थे। उन्होंने देखा कि एक सिपाही अपनी पगड़ी उतारकर पेड़ के नीचे सो रहा है।
उनको मजाक सूझा और वह पगड़ी चुपके से उठाकर थानेदार के पास पहुंच गए। उन्होंने थानेदार से कहा कि यह पगड़ी उन्हें रास्ते में पड़ी मिली, तो यह पगड़ी आपको सौंपने के लिए चला आया हूं। जो पुलिस इतनी लापरवाह हो, वह चंद्रशेखर आजाद को कैसे पकड़ेगी। यह कहकर आजाद हंसते हुए अपनी राह चले गए। बाद में थानेदार को पता चला कि यही तो चंद्रशेखर आजाद थे, तो वह अपना सर पकड़कर बैठ गया।
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