Friday, April 11, 2025

बिना संगठन के कैसे न्याय पथ पर चलेगी कांग्रेस?

अशोक मिश्र

अहमदाबाद में साबरमती के तट पर कांग्रेस का दो दिवसीय अधिवेशन खत्म हो गया। गुजरात की धरती पर कांग्रेस का अधिवेशन 64 साल बाद हुआ है। इन दो दिनों का निचोड़ यह है कि कांग्रेस अब न्याय पथ पर चलेगी। वैसे तो कांग्रेस अधिवेशन में जितने भी वक्ताओं ने अपने विचार रखे, उनमें नवीनता नजर नहीं आई। वही, मोदी सरकार पर हमला, मोदी सरकार देश बेच देगी, अडानी-अंबानी से लेकर जातिगत जनगणना और संविधान बचाने का आह्वान, यह सब तो पिछले एक-डेढ़ साल से देश की जनता सुनती आ रही है। इस अधिवेशन में ऐसा नया क्या था जिससे देश की जनता को लगे कि कांग्रेस ने नया रूप धारण किया है। कांग्रेस नेताओं ने अधिवेशन में संकल्प लिया है कि न्याय पथ पर चलते हुए सबसे पहले गुजरात को जीतना है, उसके बाद पूरा देश।
सवाल यह है कि गुजरात विधानसभा चुनाव से पहले देश में लगभग आठ-नौ राज्यों में चुनाव होने हैं। इन राज्यों का क्या होगा? क्या कांग्रेस इन राज्यों में चुनाव नहीं लड़ेगी और अपनी पूरी ताकत गुजरात में ही झोंक देगी? कुछ महीनों के बाद बिहार में विधानसभा चुनाव है। कांग्रेस नेता कन्हैया कुमार इन दिनों बिहार में ‘पलायन रोको, नौकरी दो’ पदयात्रा कर रहे हैं। कुछ दिन पहले एकाध किमी की पदयात्रा कन्हैया कुमार के साथ लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने भी की थी। भीड़ भी काफी जुटी थी। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि यह भीड़ कांग्रेस के पक्ष में वोट में कितनी तब्दील होगी? जिस तरह कन्हैया कुमार या राहुल गांधी की सभाओं, कार्यक्रमों में भीड़ उमड़ रही है, वह पोलिंग बूथ तक कांग्रेस के पक्ष में जा पाएगी? भीड़ जुटना और कांग्रेस के पक्ष में मतदान होना, दोनों अलग-अलग बाते हैं।
सभी जानते हैं कि कांग्रेस का मुख्य मुकाबला भाजपा से है। कांग्रेस नेता जब भी हमला करते हैं, तो वह भाजपा के साथ-साथ आरएसएस को अपने लपेटे में लेते हैं। चलिए मान लिया कि भाजपा और आरएसएस के साथ कांग्रेस की विचारधारा की लड़ाई है। लेकिन कांग्रेस की विचारधारा तो सबके सामने साफ होनी चाहिए। कांग्रेस पिछले दो-तीन दशक से एक सीध में चलती हुई नजर नहीं आ रही है। राहुल गांधी की दादी के जिंदा रहते तक कांग्रेस अपने को सेक्युलर कहती थी और सेक्युलरिज्म पर विश्वास भी करती थी। लेकिन राजीव गांधी ने रामजन्म भूमि का ताला खुलवाकर अपने को हिंदुओं का पक्षधर होने की कोशिश की। शाहबानो मुद्दे पर बुरी तरह मात खाए राजीव गांधी ने अरुण नेहरू की सलाह पर राममंदिर जन्मभूमि का ताला खुलवाकर अपने को हिंदू हितैषी साबित करने की कोशिश की। एक योजना के तहत अयोध्या कोर्ट में मुकदमा दायर किया गया और सिर्फ 40 मिनट में अयोध्या की कोर्ट ने फैसला देकर रामजन्म भूमि का ताला खुलवा दिया। बस, कांग्रेस का वैचारिक भटकाव यहीं से शुरू हुआ। वह भाजपा और आरएसएस के मुकाबले में वह न हिंदुत्व का झंडाबरदार बन पाई और न ही अपना धर्म निरपेक्ष चरित्र ही बरकार रख पाई।
नतीजा हुआ कि कांग्रेस से वह जनता दूर होती चली गई जो अपने को धर्म निरपेक्ष मानती थी। कार्यकर्ता दूर नहीं हुए, दूर कर दिए गए। ऊपर बैठे नेताओं ने जनता और कार्यकर्ता की उपेक्षा शुरू कर दी। इसका परिणाम यह हुआ कि पूरे देश में एक मजबूत जनाधार वाली पार्टी धीरे-धीरे खोखली होती चली गई और कार्यकर्ता विहीन हो गई। आज जब कांग्रेस के नेता पूरे देश को जीतने की बात करते हैं, तो हंसी आती है। बिना किसी संगठन के कोई चुनाव जीत सकता है, इसका कोई उदाहरण शायद ही लोकतांत्रिक व्यवस्था में मिले। कांग्रेस को अगर देश में मजबूती से खड़ा होना है, तो उसे सबसे पहले अपना संगठन खड़ा करना होगा। बूढ़े और अकड़ में चूर नेताओं को बेमुरौव्वत होकर विदा करना होगा। युवा, उत्साही और निष्ठावान कार्यकर्ताओं को जिम्मेदारी सौंपनी होगी। गुटबाजों को तो कान पकड़कर बाहर करना होगा।


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